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सफलता: सोनम मलिक छोटे से गांव से टोक्यो ओलंपिक के सफर के लिए तैयार

भारतीय कुश्ती जगत के कई लोगों को डर था कि कम उम्र की सोनम मलिक को सीनियर वर्ग के अनुभवी पहलवानों के खिलाफ मुकाबला करने से गंभीर रूप से चोटिल होने का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

हरियाणा के सोनीपत जिले के मदिना गांव की 19 साल की इस युवा पहलवान ने हालांकि ओलंपिक टिकट हासिल कर यह साबित किया कि उनका जोखिम उठाने का फैसला सही था।

सोनम में रियो ओलंपिक की पदक विजेता साक्षी मलिक को 62 किग्रा भार वर्ग में पटखनी देकर अपनी पहचान बनायी। सोनम के कोच अजमेर मलिक और उनके अभिभावक को कुश्ती के राष्ट्रीय महासंघ को दो बार की इस कैडेट विश्व चैम्पियप को सीनियर स्तर पर मौका देने के दिलवाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी। साल 2019 में काफी मेहनत के बाद हालांकि भारतीय कुश्ती संघ (डब्ल्यूएफआई) ने सोनम को रोम रैंकिंग सीरीज के लिए जनवरी 2020 के ट्रायल में मौका दिया।

सोनम के कोच अजमेर ने कहा, ‘ट्रायल्स में सोनम साक्षी मलिक पर भारी पड़ी और उन्होंने भारतीय टीम में जगह पक्की की। इसके बाद नेता जी (डब्ल्यूएफआई के अध्यक्ष बीबी शरण) ने कहा था कि अगर हम ट्रायल्स में उसे मौका नहीं देते तो यह बड़ी गलती होती।’

उन्होंने कहा, ‘डब्ल्यूएफआई और कई अन्य लोगों ने तर्क दिया था कि अनुभव की कमी के कारण वह चोटिल हो जाएगी। उन्होंने कहा कि हम ऐसा करके उसके करियर को खतरे में डाल देंगे, लेकिन हमने महासंघ को मनाना जारी रखा।’

सोनम को लेकर उनका आत्मविश्वास इतना अधिक इसलिए था क्योंकि उसने स्थानीय ‘दंगल’ में असाधारण प्रदर्शन किया था। उसने बड़े नामों के खिलाफ ओपन कैटेगरी में प्रतिस्पर्धा करते हुए जीत दर्ज की थी।’

सोनम ने रितु मलिक, सरिता मोर, निशा या सुदेश जैसे बड़े पहलवानों के खिलाफ उनकी प्रतिष्ठा की परवाह नहीं की। उन्होंने भारतीय महिला कुश्ती में बड़े नामों के खिलाफ दमदार मुकाबला किया। अजमेर ने कहा, ‘हम सिर्फ यह आकलन करना चाहते थे कि वह इन पहलवानों के खिलाफ कैसा प्रदर्शन करती है, लेकिन वह लगातार प्रभावित करती रही।’

सोनम ने 2018 में दिल्ली दंगल में एक स्कूटर और एक लाख 10 हजार रुपये का पुरस्कार जीता। कुल मिलाकर उसने पांच बार भारत केसरी का खिताब जीता। सोनम को 10 साल की उम्र से ही नाम कमाने की ललक थी।

उन्होंने मदिना स्थित नेताजी सुभाष चंद्र बोस खेल अकादमी के दिनों को याद करते हुए कहा, ‘हमने 2012 में इस अकादमी में एक प्रशिक्षण सत्र के बाद सुशील कुमार और योगेश्वर दत्त को ओलंपिक में कुश्ती करते देखा था। जब मैंने उन्हें टीवी पर देखा तो मैंने भी खुद से एक वादा किया था कि एक दिन मैं भी टीवी पर आउंगी और लोग मेरे मुकाबलों को देखेंगे।’

उन्होंने कहा, ‘मैं पदकों और बेल्टों को जीतना चाहती थी और पदक समारोह में भारतीय ध्वज को ऊपर जाते देखना चाहती थी।’ सोनम के भाई मोहित भी कुश्ती में नाम कमाना चाहते थे लेकिन कंधे की चोट के कारण उनका सपना टूट गया। उन्होंने कहा सोनम बचपन से ही निडर थी लेकिन वह काफी आज्ञाकारी भी थी।

मोहित ने कहा, ‘अगर कोच उसे कहता है कि आपको पांच किलोमीटर दौड़ना है, तो वह बिना किसी शिकायत के ऐसा करती थी। हम अक्सर अपने कोच से झूठ बोलते हैं कि हमने दौड़ पूरी कर ली है,लेकिन वह कभी झूठा दावा नहीं करती थी।’

उन्होंने बताया, ‘वह बड़े लड़कों के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करना पसंद करती थी। मैंने उसके मन में कभी डर नहीं देखा। यहां तक कि अगर वह उनसे हार भी गई, तो भी वह कभी परेशान नहीं हुई।’ इस पर सोनम ने कहा, ‘उन मजबूत लड़कों को हराने में ज्यादा मजा आता था। लड़कियों के खिलाफ कुश्ती करना भी अच्छा था लेकिन लड़कों के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करना मेरे लिए हमेशा एक अच्छी परीक्षा थी।’

सोनम जब कुश्ती नहीं करती है तब भी वह इसके बारे में ही चर्चा करती रहती है। उनका परिवार भी हमेशा कुश्ती के बारे में चर्चा करते रहता है।

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