एबॉट का यह बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ऑस्ट्रेलिया व्यापार के क्षेत्र में चीन का सबसे बड़ा भागीदार रहा है। टोनी एबॉट ने इसके बावजूद भारत से व्यापारिक समझौते पर जोर देते हुए कहा कि चीन ने पश्चिम की सद्भावना (गुडविल) का गलत ढंग से शोषण किया है।
उन्होंने कहा, चीन दिन-ब-दिन अधिक लड़ाकू होता जा रहा है इसलिए यह सभी के हित में है कि भारत जल्द से जल्द दुनिया के अन्य देशों के बीच अपना सही स्थान ले। एबॉट ने अपने लेख में बीजिंग द्वारा ऑस्ट्रेलियाई कोयले, जौ, शराब और समुद्री भोजन को बॉयकॉट करने की निंदा की।
मोदी के प्रयासों की सराहना
एबॉट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि भारत ने न सिर्फ चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता को पुनर्जीवित किया बल्कि कई अहम फैसले लेकर लोकतांत्रिक देशों के बीच बेहतर रिश्ते बनाए।
उन्होंने कहा, मोदी के नेतृत्व में मालाबार नौसैन्य अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया। इसमें जल्द ही अमेरिका, जापान और ब्रिटेन भी शामिल होंगे। उन्होंने वर्ष के अंत तक क्वाड शिखर सम्मेलन की भी उम्मीद जताई।
चीन में नहीं हुआ राजनीतिक उदारीकरण
एबॉट ने कहा कि जब ऑस्ट्रेलिया ने 2014 में जी-20 अर्थव्यवस्था के साथ चीन के पहले व्यापार समझौते को अंतिम रूप दिया, तो उन्हें लगा था कि बढ़ती समृद्धि और आर्थिक स्वतंत्रता से चीन में राजनीतिक उदारीकरण होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
एबॉट ने कहा, चीन की शक्ति वैश्विक व्यापार नेटवर्क में एक कम्युनिस्ट तानाशाही को आमंत्रित करने के लिए स्वतंत्र दुनिया के फैसले का नतीजा है। उन्होंने कहा, चीन ने हमारी तकनीक चुराने व हमारे उद्योगों को कम करते हुए पश्चिम की सद्भावना और इच्छाधारी सोच का फायदा उठाया है।
भारत-ऑस्ट्रेलिया में 30 अरब डॉलर का व्यापार
टोनी एबॉट ने जोर देकर कहा कि ऑस्ट्रेलिया को चीन से बहुत दूर जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, भारत ऑस्ट्रेलिया का स्वाभाविक भागीदार है।
उन्होंने कहा, भारत-ऑस्ट्रेलिया समान विचारधारा वाले लोकतंत्र हैं जिनके संबंध अविकसित थे, कम से कम जब तक नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री नहीं बने। भारत ऑस्ट्रेलिया का सातवां सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है, जिसका सालाना कारोबार लगभग 30 अरब डॉलर का है।