बुनियादी कानून और व्यवस्था स्थापित करने के लिए ज्यादा सैनिक व पुलिस बल की सख्त दरकार होती है। लेकिन फिलहाल जंग के मैदान में रूस के पास यूक्रेन के किसी बड़े शहर को लंबे समय तक अपने नियंत्रण में बनाए रखने के लिए फौजियों की पर्याप्त संख्या ही नहीं हैं। यूक्रेन सरकार गिरने के बाद अगर गुरिल्ला युद्ध शुरू हुआ तो रूसी फौज को और ज्यादा कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।
रूस के खिलाफ यूक्रेन के प्रतिरोध ने विश्व के सैन्य विश्लेषकों को चौंका दिया है। हफ्तेभर बाद भी रूसी फौज पड़ोसी के किसी बड़े शहर पर कब्जा करने में नाकाम रही है। कुछ विश्लेषकों ने कहा है कि अतीत में लंबे समय तक चले किसी भी युद्ध, खासतौर पर शहरी संघर्ष में रूसी फौज ने अच्छी मिसाल पेश नहीं की है।
उसकी मौजूदा स्थिति को भी देखें तो वह यूक्रेन पर आसानी से कब्जा नहीं कर पाएगी और कीव की लड़ाई तो उसके लिए ‘जीवित दुस्वप्न’ बन सकती है। सेंटर फॉर स्ट्रैटीजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के उपाध्यक्ष सेथ जोंस के मुताबिक, अगर यूक्रेनी जंग लंबी चली तो रूसी सेना अनिश्चितता में फंस जाएगी और इतिहास में भी ऐसा हो चुका है।
एक हजार यूक्रेनियों पर महज 3.4 रूसी सैनिक, जीत का बेंचमार्क 20
जोंस का कहना है, मिशन यूक्रेन को 1.50 लाख रूसी सैनिक अंजाम दे रहे हैं और यूक्रेन की आबादी 4.4 करोड़ है। इस लिहाज से प्रति एक हजार व्यक्ति पर महज 3.4 सैनिक तैनात हैं। इतिहास में लड़ी गई जंगों को देखें तो वही देश सफल रहे हैं, जिनका सैनिक अनुपात इसके मुकाबले ज्यादा था।
- मसलन, 1945 में जर्मनी पर कब्जा करने वाली मित्र सेनाओं के पास प्रति हजार लोगों पर 89.3 सैनिक थे। 1995 में बोस्निया फतह करने वाली नाटो सेना के पास यह अनुपात 17.5 तो वर्ष 2000 के कोसोव युद्ध में 19.3 था। इसी तरह पूर्वी तिमोर कब्जाने वाली वैश्विक सेनाओं के पास प्रति हजार 9.8 फौजी थे।
- सैन्य विश्लेषक और गणितज्ञ जेम्स क्विविलान ने रैंड कॉर्पोरेशन में एक समीक्षा में किसी सफल ऑपरेशन के लिए प्रति हजार आबादी पर 20 सैनिकों की जरूरत बताई थी।
अफगानिस्तान और इराक में अमेरिका के पिछड़ने की यही वजह
उन्होंने बताया कि अमेरिका और उसके सहयोगियों के पास 2002 में अफगानिस्तान और 2003 में इराक में यह सैनिक अनुपात क्रमश 0.5 और 6.1 ही रहा था। इन युद्धों का नतीजा सबके सामने है।
गुरिल्ला युद्ध हुआ तो कैसे निपटेगा रूस
जोंस कहते हैं कि बुनियादी कानून और व्यवस्था स्थापित करने के लिए ज्यादा सैनिक व पुलिस बल की सख्त दरकार होती है। लेकिन फिलहाल जंग के मैदान में रूस के पास यूक्रेन के किसी बड़े शहर को लंबे समय तक अपने नियंत्रण में बनाए रखने के लिए फौजियों की पर्याप्त संख्या ही नहीं हैं।
जोंस के मुताबिक, यूक्रेन सरकार गिरने के बाद अगर गुरिल्ला युद्ध शुरू हुआ तो रूसी फौज को और ज्यादा कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। उस पर यूक्रेनी विद्रोहियों द्वारा अलग-थलग करने का बड़ा खतरा रहेगा।
रूस पर प्रतिबंधों की आंच में झुलसे यूरोपीय बैंक
रूस पर लगातार सख्त प्रतिबंधों के चलते यूरोप और ब्रिटेन के स्टॉक मार्केट में बुधवार को भी यूरोपीय बैंकों का बुरा हाल रहा। तीन दिन की गिरावट के बाद कई बैंक 11 महीने के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गए हैं।
रूस के स्बेरबैंक सहित अन्य बैंकों के यूरोपीय संस्थानों को जबरन बंद करने से यूरोपीय बैंक इंडेक्स में भी लगातार तीसरे दिन गिरावट आई। पिछले महीने के मुकाबले यह 27 प्रतिशत गिर चुका है। कई वित्तीय कंपनियों ने निवेश रोकने या वापस लाने की घोषणाएं की हैं।
एपल, बोइंग ने लगाया प्रतिबंध
अमेरिकी तकनीकी कंपनी एपल ने रूस में अपने आईफोन व अन्य उत्पाद बेचने पर रोक लगा दी। फोर्ड मोटर ने भी ऐसा ही कदम उठाया। बोइंग कंपनी ने रूसी विमानों का रख रखाव व तकनीकी मदद रोकी। कई अन्य तकनीकी व ऊर्जा क्षेत्रों में अमेरिकी, यूरोपीय व ब्रिटिश कंपनियों ने भी ऐसे कदम उठाने की घोषणा की।
तकनीकी सेवाएं, विज्ञापन रोक रही कंपनियां
एपल ने बताया कि वह अपने मैप एप में बदलाव करेगा ताकि यूकेन के नागरिकों को मदद दे सके। वहीं रूस में उसने कई एप डाउन करने से यूजर्स को रोक दिया है। इसी तरह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म भी अपनी सेवाएं रोक रहे हैं, या रूसी पक्ष से आ रहे समाचारों का प्रसार सीमित कर रहे हैं। रूस और बेलारूस के कई मोबाइल गेम्स और समाचार एप से विज्ञापन रोक दिए गए हैं।
रूस का दांव : आईटी कंपनियों को तीन साल के लिए आयकर से छूट
रूस के प्रधानमंत्री मिखाइल मिशुस्तिन ने बुधवार को एलान किया कि रूस में मौजूद सभी आईटी कंपनियों को तीन साल के लिए आयकर और शुल्क चुकाने से राहत दी जाएगी। मॉस्को ने यह फैसला यूक्रेन में रूसी हमले के चलते पश्चिमी देशों द्वारा उस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों के चलते लिया है। क्रेमलिन ने जोर देकर कहा कि उसके पास प्रतिबंधों का सामना करने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं। हाल के दिनों में रूसी कैबिनेट ने देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं।
विस्तार
रूस के खिलाफ यूक्रेन के प्रतिरोध ने विश्व के सैन्य विश्लेषकों को चौंका दिया है। हफ्तेभर बाद भी रूसी फौज पड़ोसी के किसी बड़े शहर पर कब्जा करने में नाकाम रही है। कुछ विश्लेषकों ने कहा है कि अतीत में लंबे समय तक चले किसी भी युद्ध, खासतौर पर शहरी संघर्ष में रूसी फौज ने अच्छी मिसाल पेश नहीं की है।
उसकी मौजूदा स्थिति को भी देखें तो वह यूक्रेन पर आसानी से कब्जा नहीं कर पाएगी और कीव की लड़ाई तो उसके लिए ‘जीवित दुस्वप्न’ बन सकती है। सेंटर फॉर स्ट्रैटीजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के उपाध्यक्ष सेथ जोंस के मुताबिक, अगर यूक्रेनी जंग लंबी चली तो रूसी सेना अनिश्चितता में फंस जाएगी और इतिहास में भी ऐसा हो चुका है।
एक हजार यूक्रेनियों पर महज 3.4 रूसी सैनिक, जीत का बेंचमार्क 20
जोंस का कहना है, मिशन यूक्रेन को 1.50 लाख रूसी सैनिक अंजाम दे रहे हैं और यूक्रेन की आबादी 4.4 करोड़ है। इस लिहाज से प्रति एक हजार व्यक्ति पर महज 3.4 सैनिक तैनात हैं। इतिहास में लड़ी गई जंगों को देखें तो वही देश सफल रहे हैं, जिनका सैनिक अनुपात इसके मुकाबले ज्यादा था।
- मसलन, 1945 में जर्मनी पर कब्जा करने वाली मित्र सेनाओं के पास प्रति हजार लोगों पर 89.3 सैनिक थे। 1995 में बोस्निया फतह करने वाली नाटो सेना के पास यह अनुपात 17.5 तो वर्ष 2000 के कोसोव युद्ध में 19.3 था। इसी तरह पूर्वी तिमोर कब्जाने वाली वैश्विक सेनाओं के पास प्रति हजार 9.8 फौजी थे।
- सैन्य विश्लेषक और गणितज्ञ जेम्स क्विविलान ने रैंड कॉर्पोरेशन में एक समीक्षा में किसी सफल ऑपरेशन के लिए प्रति हजार आबादी पर 20 सैनिकों की जरूरत बताई थी।
Agency, Amar Ujala Research Team,