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म्यांमार: सैनिक शासकों का अजीब खेल, जेब भरने के लिए खरीद रहे हैं हथियार

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, यंगून
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Sat, 29 Jan 2022 03:11 PM IST

सार

विश्लेषकों के मुताबिक म्यांमार की सेना अब चीन में बनी टैंक भेदी सी-802 मिसाइलों से लैस है। जबकि म्यांमार की वायु सेना को चीन ने जेएफ-17 थंडर फाइटर्स और शान्क्सी वाई-8 ट्रांसपोर्ट विमानों की सप्लाई की है। इसी क्रम में पनडुब्बी की सप्लाई भी उसने की है…

म्यांमार जनरल मिन आंग हलिंग
– फोटो : Agency (File Photo)

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म्यांमार की सरकार ने हाल में दो पनडुब्बियां खरीदी हैं। उनके इस फैसले को लेकर कूटनीतिक हलकों में हैरत जताई गई है। म्यांमार की सीमा हर तरफ से किसी ना किसी देश की जमीन से लगती है। यानी उसकी कोई समुद्री सीमा नहीं है। आम समझ यही है कि ऐसे देश नौसेना पर ज्यादा खर्च नहीं करते।

मार्च 2020 में भारत ने म्यांमार को 3000 टन की सोवियत दौर में बनी किलो-क्लास की पनडुब्बी दी थी। उस समय म्यांमार में निर्वाचित सरकार सत्ता में थी। अब खबर है कि म्यांमार का सैनिक शासन उस पनडुब्बी को बंगाल की खाड़ी में स्थित अपने नौ सैनिक अड्डे में तैनात करेगा। इस बीच सैनिक शासकों ने बीते दिसंबर में चीन से एक पनडुब्बी खरीदी। 2100 टन की टाइप-035 मिंग क्लास की इस पुनडब्बी के बारे में बताया जाता है कि यह हमला करने में सक्षम है। सैनिक शासन ने चीन से खरीदी गई पनडुब्बी का प्रदर्शन यंगून नदी में किया है। उसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर चर्चित हुई हैं।

चीन ने बढ़ाई हथियारों की सप्लाई

जानकारों के मुताबिक पनडुब्बियों की इन खरीदारी में गहरा कूटनीति संदेश छिपा है। भारत 2013 से म्यांमार को गोला बारूद और रात्रि-दृष्टि (नाइट विजन) उपकरणों की सप्लाई कर रहा था। उसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए भारत ने म्यांमार को पुनडुब्बी दी थी। इससे म्यांमार में भारत का प्रभाव बढ़ने की उम्मीद की गई थी। लेकिन साल भर पहले हुए सैनिक तख्ता पलट ने समीकरण बदल दिए हैँ। अब चीन ने हथियारों की सप्लाई बढ़ा दी है।

विश्लेषकों के मुताबिक म्यांमार की सेना अब चीन में बनी टैंक भेदी सी-802 मिसाइलों से लैस है। जबकि म्यांमार की वायु सेना को चीन ने जेएफ-17 थंडर फाइटर्स और शान्क्सी वाई-8 ट्रांसपोर्ट विमानों की सप्लाई की है। इसी क्रम में पनडुब्बी की सप्लाई भी उसने की है।

सप्लाई की होड़ में रूस भी उतरा

वेबसाइट एशिया टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक म्यांमार को हथियार सप्लाई करने की होड़ में अब रूस भी उतर गया है। बीते 23 जनवरी को रूस में बने टैंक और अन्य उपकरण म्यांमार की सेना को सौंपे गए। लेकिन रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि म्यांमार की सेना फिलहाल जंगलों में छिपे छापामार दस्तों से युद्ध लड़ रही है। ऐसी लड़ाई में हाल में खरीदे गए टैंक और भारी बख्तरबंद वाहनों का कोई इस्तेमाल संभव नहीं है। ऐसे में यह संदेह जताया जा रहा है कि ये तमाम खरीदारियां सत्ताधारी सैन्य अधिकारियों की जेब भरने के लिए की गई हैं।

पर्यवेक्षकों ने ध्यान दिलाया है कि सैनिक शासन ऐसी महंगी खरीदारियां उस समय कर रहे हैं, जब देश गहरे आर्थिक और वित्तीय संकट में है। पिछले साल म्यांमार की अर्थव्यवस्था 18 फीसदी सिकुड़ी थी। लेकिन ऐसा लगता है कि सैनिक शासकों की सर्वोच्च प्राथमिकता देश पर अपना शासन बनाए रखने और सैनिकों को लाभ पहुंचाकर उन्हें वफादार बनाए रखना है।

इस बीच देश में मानवीय दुर्दशा की स्थिति गंभीर हो गई है। संयुक्त राष्ट्र की मानवीय सहायता एजेंसी और संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग की इस महीने जारी एक साझा रिपोर्ट में बताया गया था कि देश में जारी लड़ाई के कारण एक लाख 35 हजार से अधिक लोग विस्थापित हो गए हैं। उनके अलावा भी आबादी का एक बड़ा हिस्सा भारी किल्लत और मुसीबतों के बीच जीवन गुजार रहा है।

विस्तार

म्यांमार की सरकार ने हाल में दो पनडुब्बियां खरीदी हैं। उनके इस फैसले को लेकर कूटनीतिक हलकों में हैरत जताई गई है। म्यांमार की सीमा हर तरफ से किसी ना किसी देश की जमीन से लगती है। यानी उसकी कोई समुद्री सीमा नहीं है। आम समझ यही है कि ऐसे देश नौसेना पर ज्यादा खर्च नहीं करते।

मार्च 2020 में भारत ने म्यांमार को 3000 टन की सोवियत दौर में बनी किलो-क्लास की पनडुब्बी दी थी। उस समय म्यांमार में निर्वाचित सरकार सत्ता में थी। अब खबर है कि म्यांमार का सैनिक शासन उस पनडुब्बी को बंगाल की खाड़ी में स्थित अपने नौ सैनिक अड्डे में तैनात करेगा। इस बीच सैनिक शासकों ने बीते दिसंबर में चीन से एक पनडुब्बी खरीदी। 2100 टन की टाइप-035 मिंग क्लास की इस पुनडब्बी के बारे में बताया जाता है कि यह हमला करने में सक्षम है। सैनिक शासन ने चीन से खरीदी गई पनडुब्बी का प्रदर्शन यंगून नदी में किया है। उसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर चर्चित हुई हैं।

चीन ने बढ़ाई हथियारों की सप्लाई

जानकारों के मुताबिक पनडुब्बियों की इन खरीदारी में गहरा कूटनीति संदेश छिपा है। भारत 2013 से म्यांमार को गोला बारूद और रात्रि-दृष्टि (नाइट विजन) उपकरणों की सप्लाई कर रहा था। उसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए भारत ने म्यांमार को पुनडुब्बी दी थी। इससे म्यांमार में भारत का प्रभाव बढ़ने की उम्मीद की गई थी। लेकिन साल भर पहले हुए सैनिक तख्ता पलट ने समीकरण बदल दिए हैँ। अब चीन ने हथियारों की सप्लाई बढ़ा दी है।

विश्लेषकों के मुताबिक म्यांमार की सेना अब चीन में बनी टैंक भेदी सी-802 मिसाइलों से लैस है। जबकि म्यांमार की वायु सेना को चीन ने जेएफ-17 थंडर फाइटर्स और शान्क्सी वाई-8 ट्रांसपोर्ट विमानों की सप्लाई की है। इसी क्रम में पनडुब्बी की सप्लाई भी उसने की है।

सप्लाई की होड़ में रूस भी उतरा

वेबसाइट एशिया टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक म्यांमार को हथियार सप्लाई करने की होड़ में अब रूस भी उतर गया है। बीते 23 जनवरी को रूस में बने टैंक और अन्य उपकरण म्यांमार की सेना को सौंपे गए। लेकिन रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि म्यांमार की सेना फिलहाल जंगलों में छिपे छापामार दस्तों से युद्ध लड़ रही है। ऐसी लड़ाई में हाल में खरीदे गए टैंक और भारी बख्तरबंद वाहनों का कोई इस्तेमाल संभव नहीं है। ऐसे में यह संदेह जताया जा रहा है कि ये तमाम खरीदारियां सत्ताधारी सैन्य अधिकारियों की जेब भरने के लिए की गई हैं।

पर्यवेक्षकों ने ध्यान दिलाया है कि सैनिक शासन ऐसी महंगी खरीदारियां उस समय कर रहे हैं, जब देश गहरे आर्थिक और वित्तीय संकट में है। पिछले साल म्यांमार की अर्थव्यवस्था 18 फीसदी सिकुड़ी थी। लेकिन ऐसा लगता है कि सैनिक शासकों की सर्वोच्च प्राथमिकता देश पर अपना शासन बनाए रखने और सैनिकों को लाभ पहुंचाकर उन्हें वफादार बनाए रखना है।

इस बीच देश में मानवीय दुर्दशा की स्थिति गंभीर हो गई है। संयुक्त राष्ट्र की मानवीय सहायता एजेंसी और संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग की इस महीने जारी एक साझा रिपोर्ट में बताया गया था कि देश में जारी लड़ाई के कारण एक लाख 35 हजार से अधिक लोग विस्थापित हो गए हैं। उनके अलावा भी आबादी का एक बड़ा हिस्सा भारी किल्लत और मुसीबतों के बीच जीवन गुजार रहा है।

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