मीराबाई ने पहले दिन ही चांदी से देश को रोशन कर दिया तो समापन से एक दिन पहले नीरज चोपड़ा के सोने से पूरा भारत चमक उठा। बेटियों ने ओलंपिक खेलों की अपनी 69वीं सालगिरह को यादगार बना डाला। पहली बार बेटियों ने किसी ओलंपिक में पदक की हैट्रिक लगाई। कुछ ने अपने चमत्कारिक खेल से भविष्य की नई उम्मीद जगाई। याद रहे भारतीय महिलाओं ने पहली बार 1952 हेलसिंकी में भाग लिया था और यह खेल भी जुलाई-अगस्त में ही हुए थे।
मीरा ने दिखाई नई राह : मीराबाई चानू (49 किग्रा) ने पहले ही दिन रजत पदक जीतकर भारतीय खेलों में नया अध्याय जोड़ा। पहली बार भारत ने ओलंपिक के पहले ही दिन पदक जीतकर शुरुआत की वो भी चांदी से। उनके इस पदक ने वेटलिफ्टिंग को तो नया जीवन दिया ही साथ ही बेटियों को भी नई राह दिखायी। उन्होंने 21 साल बाद देश को वेटलिफ्टिंग में पदक दिलाया। उनसे पहले कर्णम मल्लेश्वरी ने 2000 सिडनी ओलंपिक में कांसा जीता था।
सिंधू जैसा कोई नहीं : विश्व चैंपियन पीवी सिंधू भले ही पीले तमगे से चूक गईं लेकिन उनके कांसे ने भी इतिहास रच दिया। वह लगातार दो ओलंपिक में पदक जीतने वाली देश की पहली बेटी जबकि कुल दूसरी खिलाड़ी बन गईं। सेमीफाइनल में ताई से हारने के बाद 26 वर्षीय सिंधू ने तीसरे स्थान के लिए हुए मुकाबले में पूरी जानकर टोक्यो खेलों में देश को दूसरा पदक दिलाया।
रिंग की नई मलिका लवलीना : पहली ही बार ओलंपिक में खेलने वाली असम की 23 साल की लवलीना बोरगोहेन (69 किग्रा) भारतीय रिंग की नई मलिका बन गईं। उन्होंने अपने मुक्कों से मुक्केबाजी में नई कहानी लिखी। वह दिग्गज मैरीकॉम के बाद ओलंपिक में पदक जीतने वाली देश की दूसरी बिटिया जबकि कुल तीसरी मुक्केबाज बनीं। मैरी भले ही दूसरा पदक नहीं जीत पाईं लेकिन उन्होंने अपने खेल से सभी का दिल जीत लिया।
हॉकी की नई रानियां : रानी रामपाल की अगुवाई में महिला हॉकी ने इस खेल में नई जान फूंक दी। तीन मैच हारने के बाद बेटियां जिस तरह से लड़ी और पदक के मुकाबले तक पहुंची वह मिसाल बन गईं। भले ही वह ब्रिटेन से कांस्य पदक के मुकाबले में चूक गईं लेकिन उनकी यह हार किसी विजय से कम नहीं है। किसी ने महिला टीम के सेमीफाइनल तक पहुंचने की उम्मीद भी नहीं की थी। पर उन्होंने अपने हार न माने वाले जज्बे से सभी को अपना मुराद बना लिया।
छुपी रुस्तम निकलीं अदिति : गोल्फर अदिति अशोक भी अद्वितीय निकली। लगातार दूसरे ओलंपिक में खेलने वाली 23 वर्षीय अदिति दो स्ट्रोक से पदक चूक गईं। लगातार तीन दिन तक शीर्ष दो में रहने वाली अदिति की किस्मत अंतिम दिन उनसे रूठ गईं और वह चौथे स्थान पर रहीं। इसके बाद उन्होंने कहा मैंने अपना 100 प्रतिशत दिया, लेकिन ओलंपिक में पदक की तुलना में चौथे स्थान के मायने नहीं हैं। किसी भी अन्य टूर्नामेंट में यदि मैं इस स्थान पर रहती तो मुझे वास्तव में खुशी होती, लेकिन चौथे स्थान से खुश होना मुश्किल है।
कमलप्रीत का कमाल : पहली बार ओलंपिक और अपनी दूसरी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में खेलने वाली में डिस्कस थ्रोअर कमलप्रीत ने भी फाइनल में पहुंचकर कमाल कर दिया। पंजाब की कमलप्रीत 63.70 मीटर का सर्वश्रेष्ठ थ्रो लगाकर छठे स्थान पर रहीं पर उन्होंने भविष्य की उम्मीद जगा दी। वह कृष्णा पूनिया के नौ साल बाद ओलंपिक के फाइनल में पहुंचने वाली पहली चक्का फेंक खिलाड़ी बनीं।
49 फीसदी महिलाएं : ओलंपिक इतिहास में पहली बार लैंगिक सामनता देखने को मिली। इस बार महिलाओं और पुरुष की भागीदारी लगभग समान थी। टोक्यो में 49 फीसदी महिला तो 51 फीसदी पुरुष खिलाड़ियों ने चुनौती पेश की। यही नहीं महिला खिलाड़ी पदक जीतने में भी लगभग पुरुषों के बराबर रहीं।
121 साल पहले 22 के साथ हुई थी शुरुआत : महिलाओं को पहली बार चुनौती पेश करने का हक 121 साल पहले (1900) पेरिस में मिला था। तब 997 खिलाड़ियों में सिर्फ 22 महिला खिलाड़ी थी। स्विट्जरलैंड की हेलेन दे पोर्तालेस ओलंपिक में खेलने वाली पहली महिला बनी थीं।
समानता का मिला हक : कोरोना के बीच हुए इन खेलों ने समानता की एक नई मिसाल भी पेश की। न्यूजीलैंड की वेटलिफ्टर लॉरेल हब्बार्ड ओलंपिक में खेलने वाली दुनिया की पहली ट्रांसजेंडर (पुरुष से महिला बनीं) बनीं। वो भले ही पदक नहीं जीत पाईं लेकिन समानता के हक के लिए ऐतिहासिक जीत दर्ज करवाने में सफल रहीं। हालांकि इसके बाद उन्होंने खेलों से संन्यास भी ले लिया।
एम्मा सात पदक जीतने वाली पहली तैराक : ऑस्ट्रेलिया की महिला तैराक एम्मा मैककॉन ने चार स्वर्ण सहित कुल सात पदक जीतकर कीर्तिमान स्थापित किया। मैककॉन एक ओलंपिक में सात पदक जीतने वाली पहली महिला तैराक और ओवरऑल (सभी खेलों को मिलाकर) दूसरी खिलाड़ी बनीं। मैककॉन के अलावा सिर्फ सोवियत संघ की जिम्नास्ट मारिया गोरोखोवस्काया ही एक ओलंपिक में सात पदक जीत सकीं हैं। उन्होंने 1952 हेलसिंकी में दो स्वर्ण और पांच रजत पदक जीते थे।
12 व 13 साल की बच्चियों की ऊंची उड़ान : ओलंपिक में पहली बार शामिल किए गए स्केटबोर्डिंग स्पर्धा में 12 और 13 साल की बच्चियों ने पदक जीतकर कमाल कर दिया। जापान की 12 साल 343 दिन की कोकोना हिराकी रजत जीतकर पिछले 85 साल में ओलंपिक में पदक जीतने वाली सबसे युवा खिलाड़ी बनी। इसी स्पर्धा का कांस्य पदक जीतने वाली स्काई ब्राउन (13 साल 28) ने ब्रिटेन की सबसे युवा पदक विजेता खिलाड़ी बनीं। जापान की मोमिजी निशिया 13 स्वर्ण जीतने सबसे युवा खिलाड़ी बनीं। ब्राजील की 13 साल की रेसा लील ने रजत जीता।