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चीन: नए डाटा कानून से बढ़ेगी पश्चिमी देशों की नाराजगी, बढ़ सकता है अंतरराष्ट्रीय तनाव

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, बीजिंग
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Fri, 05 Nov 2021 06:59 PM IST

सार

विश्लेषकों का कहना है कि ये कानून चीन में टेक कंपनियों पर पिछले साल नवंबर से जारी कार्रवाई का ही हिस्सा है। बीते एक साल में इस कार्रवाई के तहत एंट ग्रुप और डिडी जैसी बड़ी कंपनियों को निशाना बनाया गया है। इसके अलावा ज्यादातर लोकप्रिय वित्तीय ब्लॉग्स को बंद करवा दिया गया है, क्रिप्टोकरेंसी पर रोक लगाई गई है, और गेमिंग जैसे उद्योगों पर नए नियम लागू कर दिए गए हैं…

चीनी डाटा संरक्षण कानून
– फोटो : iStock

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इंटरनेट कंपनियों का डाटा एकत्र और स्टोर करने के बारे में चीन ने एक नवंबर से नए सख्त नियमों को लागू कर दिया है। इसे निजी सूचना संरक्षण अधिनियम कहा गया है। बताया जाता है कि दुनिया भर में डाटा संरक्षण के इतना सख्त कानून अभी कहीं और लागू नहीं हैं। इस कानून के तहत अब टेक कंपनियों को ऐसी बाहरी संस्था नियुक्त करनी होगी, जो डाटा संग्रह की निगरानी करेगी। विदेशी कंपनियों को अपने ऐसे प्रतिनिधि नियुक्त करने होंगे, जो चीन सरकार के प्रति जवाबदेह होंगे। जो कंपनियां इन नियमों का उल्लंघन करेंगी, उन पर सख्त जुर्माना लगेगा। ये रकम उनके सालाना कारोबार की पांच फीसदी के बराबर तक हो सकती है।

विश्लेषकों का कहना है कि ये कानून चीन में टेक कंपनियों पर पिछले साल नवंबर से जारी कार्रवाई का ही हिस्सा है। बीते एक साल में इस कार्रवाई के तहत एंट ग्रुप और डिडी जैसी बड़ी कंपनियों को निशाना बनाया गया है। इसके अलावा ज्यादातर लोकप्रिय वित्तीय ब्लॉग्स को बंद करवा दिया गया है, क्रिप्टोकरेंसी पर रोक लगाई गई है, और गेमिंग जैसे उद्योगों पर नए नियम लागू कर दिए गए हैं। अब ऐसे संकेत जल्द हैं कि जल्द ही शेयर मार्केट के बारे में सूचना देने वाले ज्यादातर लोकप्रिय ऐप भी प्रतिबंधित कर दिए जाएंगे।

जानकारों का कहना है कि चीन की इस कार्रवाई का असर सिर्फ चीनी कंपनियों पर नहीं पड़ा है। बल्कि उससे पूरी दुनिया की वित्तीय व्यवस्था प्रभावित हुई है। चीन की वित्तीय व्यवस्था 45 ट्रिलियन डॉलर के करीब है। इस रूप में वह शेयर और बॉन्ड का दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा बाजार है। वेबसाइट एशिया टाइम्स के एक ताजा विश्लेषण में कहा गया है- ‘अगर आप इन बाजारों पर निकटता से गौर करें, तो आपको समझ में आएगा कि चीन में पूरी सोच ही बदल रही है। यह सोच पश्चिमी बाजारों से बिल्कुल अलग है। यह देखने पर आपको समझ में आता है कि कार्रवाई कितनी व्यापक है। लेकिन चीन ने ऐसा क्यों किया, यह समझना अभी भी मुश्किल है।’

लेकिन ब्रिटेन में यूनिवर्सिटी ऑफ वॉरविक में अनुसंधानकर्ता जोहानेस पेट्री के मुताबिक चीन दुनिया के मौजूद वित्तीय नजरिए का विकल्प पेश करने की कोशिश में है। पेट्री ने कहा कि बाजारों में सरकार का हस्तक्षेप सिर्फ चीन में नहीं बढ़ा है। बल्कि ऐसा ही ब्राजील, रूस, दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण कोरिया में भी देखने को मिला है। लेकिन चीन में कार्रवाई का दायरा बहुत बड़ा है। चीन में कार्रवाई के दायरे में कच्चे तेल, लौह अयस्क, तांबा और सोने के कारोबार को भी लाया गया है। पेट्री ने कहा कि चीन राजकीय पूंजीवाद के मॉडल को आगे बढ़ा रहा है।

इसमें अर्थव्यवस्था की कमान सरकार के हाथ में रहती है। जबकि पश्चिमी देश मुक्त बाजार की अर्थव्यवस्था के समर्थक हैं। कई जानकारों की राय है कि चीन और पश्चिमी देशों के बीच जो टकराव चल रहा है, उसकी वजह नजरिए का यह फर्क भी है। चीन के नए डाटा कानून से पश्चिमी कंपनियां भी प्रभावित होंगी। इसलिए अंदेशा है कि ये कानून पहले से जारी अंतरराष्ट्रीय तनाव में और इजाफा कर सकता है।

विस्तार

इंटरनेट कंपनियों का डाटा एकत्र और स्टोर करने के बारे में चीन ने एक नवंबर से नए सख्त नियमों को लागू कर दिया है। इसे निजी सूचना संरक्षण अधिनियम कहा गया है। बताया जाता है कि दुनिया भर में डाटा संरक्षण के इतना सख्त कानून अभी कहीं और लागू नहीं हैं। इस कानून के तहत अब टेक कंपनियों को ऐसी बाहरी संस्था नियुक्त करनी होगी, जो डाटा संग्रह की निगरानी करेगी। विदेशी कंपनियों को अपने ऐसे प्रतिनिधि नियुक्त करने होंगे, जो चीन सरकार के प्रति जवाबदेह होंगे। जो कंपनियां इन नियमों का उल्लंघन करेंगी, उन पर सख्त जुर्माना लगेगा। ये रकम उनके सालाना कारोबार की पांच फीसदी के बराबर तक हो सकती है।

विश्लेषकों का कहना है कि ये कानून चीन में टेक कंपनियों पर पिछले साल नवंबर से जारी कार्रवाई का ही हिस्सा है। बीते एक साल में इस कार्रवाई के तहत एंट ग्रुप और डिडी जैसी बड़ी कंपनियों को निशाना बनाया गया है। इसके अलावा ज्यादातर लोकप्रिय वित्तीय ब्लॉग्स को बंद करवा दिया गया है, क्रिप्टोकरेंसी पर रोक लगाई गई है, और गेमिंग जैसे उद्योगों पर नए नियम लागू कर दिए गए हैं। अब ऐसे संकेत जल्द हैं कि जल्द ही शेयर मार्केट के बारे में सूचना देने वाले ज्यादातर लोकप्रिय ऐप भी प्रतिबंधित कर दिए जाएंगे।

जानकारों का कहना है कि चीन की इस कार्रवाई का असर सिर्फ चीनी कंपनियों पर नहीं पड़ा है। बल्कि उससे पूरी दुनिया की वित्तीय व्यवस्था प्रभावित हुई है। चीन की वित्तीय व्यवस्था 45 ट्रिलियन डॉलर के करीब है। इस रूप में वह शेयर और बॉन्ड का दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा बाजार है। वेबसाइट एशिया टाइम्स के एक ताजा विश्लेषण में कहा गया है- ‘अगर आप इन बाजारों पर निकटता से गौर करें, तो आपको समझ में आएगा कि चीन में पूरी सोच ही बदल रही है। यह सोच पश्चिमी बाजारों से बिल्कुल अलग है। यह देखने पर आपको समझ में आता है कि कार्रवाई कितनी व्यापक है। लेकिन चीन ने ऐसा क्यों किया, यह समझना अभी भी मुश्किल है।’

लेकिन ब्रिटेन में यूनिवर्सिटी ऑफ वॉरविक में अनुसंधानकर्ता जोहानेस पेट्री के मुताबिक चीन दुनिया के मौजूद वित्तीय नजरिए का विकल्प पेश करने की कोशिश में है। पेट्री ने कहा कि बाजारों में सरकार का हस्तक्षेप सिर्फ चीन में नहीं बढ़ा है। बल्कि ऐसा ही ब्राजील, रूस, दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण कोरिया में भी देखने को मिला है। लेकिन चीन में कार्रवाई का दायरा बहुत बड़ा है। चीन में कार्रवाई के दायरे में कच्चे तेल, लौह अयस्क, तांबा और सोने के कारोबार को भी लाया गया है। पेट्री ने कहा कि चीन राजकीय पूंजीवाद के मॉडल को आगे बढ़ा रहा है।

इसमें अर्थव्यवस्था की कमान सरकार के हाथ में रहती है। जबकि पश्चिमी देश मुक्त बाजार की अर्थव्यवस्था के समर्थक हैं। कई जानकारों की राय है कि चीन और पश्चिमी देशों के बीच जो टकराव चल रहा है, उसकी वजह नजरिए का यह फर्क भी है। चीन के नए डाटा कानून से पश्चिमी कंपनियां भी प्रभावित होंगी। इसलिए अंदेशा है कि ये कानून पहले से जारी अंतरराष्ट्रीय तनाव में और इजाफा कर सकता है।

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