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शीर्ष अदालत ने इस टिप्पणी के साथ सरकारी कंपनी टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (टीएचडीसीएल) की वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें उत्तराखंड हाईकोर्ट के 2018 के आदेश को चुनौती दी गई थी।
चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, सरकार यह नहीं कह सकती कि उसकी अपनी नीति है और इस प्रकार मुआवजा कम किया जाएगा। खासतौर पर जब मुआवजे की पुष्टि सुप्रीम कोर्ट कर चुका हो।
इससे पहले टीएचडीसीएल की तरफ से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने पीठ से कहा था कि कंपनी ने भू अधिग्रहण के लिए मुआवजा दिया था और विकसित जमीन पाने वालों से विकास शुल्क लेना चाहती है। इसके दायरे में 4500 परिवार आते हैं।
इस पर चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम की मौजूदगी वाली पीठ ने पूछा कि आपने किस नियम के तहत मुआवजे में से कटौती की है? आप इस बात को लेकर बहस नहीं कर सकते कि इसे लेकर कोई नीति है। यह असांविधानिक है। कोई राज्य सरकार भूमि अधिग्रहण के बदले में दिए मुआवजे से कटौती कैसे कर सकती है?
पीठ ने याचिका खारिज करते हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल से कहा, महज इसलिए कि आप अपने तर्कों में बेहद मजबूत हैं, हम सरकार (सरकारी कंपनी) को एक और मौका नहीं दे सकते। स्पेशल लीव पिटीशन खारिज की जाती है। साथ ही यदि इस मामले से जुड़ी कोई याचिका लंबित है तो वह भी रद्द की जाती है।