सार
भाजपा के आंतरिक सर्वे तो यही बताते हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह बनारस गए थे। नतीजों में किसानों की नाराजगी बड़ा मुद्दा बनकर उभरी। आजमगढ़ की उनकी जनसभा में जनता में कोई बड़ा उत्साह नहीं दिखाई दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन करने गए, जनता की भागीदारी को लेकर नतीजे अच्छे नहीं आए। प्रस्तावित कार्यक्रम के अनुसार 17-19 नवंबर तक प्रधानमंत्री को बुंदेलखंड, झांसी और उत्तर प्रदेश में ही रहना है…
पीएम मोदी ने कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की
– फोटो : ANI
आज 19 नवंबर है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जन्मदिन। गुरुनानक देव का प्राकट्य दिवस, प्रकाश पर्व। सुबह करीब आठ बजे प्रधानमंत्री कार्यालय ने अचानक ट्वीट किया कि देश के प्रधानमंत्री मोदी ठीक एक घंटे बाद 9.00 बजे राष्ट्र को संबोधित करने वाले हैं। प्रधानमंत्री एक खूबसूरत शाल लपेटे राष्ट्र को संबोधित करने आए और डेढ़ साल पहले देश के कृषि क्षेत्र में वैज्ञानिक तरीके से सुधार के वास्ते लाए गए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की औपचारिक घोषणा कर दी। हालांकि संसद के शीतकालीन सत्र में आधिकारिक तौर पर प्रक्रिया के तहक इन्हें वापस लिया जाएगा।
प्रधानमंत्री की इस घोषणा के बाद तीन किसान नेताओं को इसकी सूचना दी। इनमें एक चौधरी हरपाल सिंह भी थे। तीनों नेताओं की नींद की खुमारी अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि इतनी चौंकाने वाली खबर मिल गई। पहले तो उन्हें भरोसा नहीं हुआ। लेकिन जब प्रधानमंत्री की घोषणा के बारे में आश्वस्त हुए तो एक नेता के मुंह से पहली प्रतिक्रिया यही निकली कि सरकार उत्तर प्रदेश चुनाव देखकर किसानों से डर गई। खैर, अंत भला तो सब भला।
सरकार ने टेक दिया घुटना?
पिछले कई महीनों से किसान और किसान नेता एक तरह से ठंडे पड़ गए थे। लखीमपुर खीरी घटना और बाद में पंजाब-हरियाणा के किसान संगठनों में बढ़ी राजनीति नया माहौल बना रही थी। कहा जा सकता है कि किसान देश की सरकार से नाराज थे, लेकिन किसान संगठनों के सहारे केंद्र सरकार पर आंदोलन को लेकर पड़ने वाला दबाव घटता जा रहा था। दिल्ली के पास उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब से आने वाले हाईवे लगे किसानों के टेंट और तंबू की रौनक भी बिल्कुल फीकी चल रही थी, लेकिन सरकार ने अचानक यह निर्णय ले लिया। बजरंग दल के संस्थापक नेता विनय कटियार ने इसे देर आए, दुरुस्त आए बताया। कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल ने भी प्रतिक्रिया दी। राजद के प्रो. मनोज झा ने इसे केंद्र सरकार का घुटने टेकना बताया। आज दिन भर अब मीडिया में किसान आंदोलन की ही खबर चलने की उम्मीद है।
क्या उत्तर प्रदेश चुनाव को देखते हुए डर गई सरकार?
भाजपा के आंतरिक सर्वे तो यही बताते हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह बनारस गए थे। नतीजों में किसानों की नाराजगी बड़ा मुद्दा बनकर उभरी। आजमगढ़ की उनकी जनसभा में जनता में कोई बड़ा उत्साह नहीं दिखाई दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन करने गए, जनता की भागीदारी को लेकर नतीजे अच्छे नहीं आए। प्रस्तावित कार्यक्रम के अनुसार 17-19 नवंबर तक प्रधानमंत्री को बुंदेलखंड, झांसी और उत्तर प्रदेश में ही रहना है। भाजपा ने उत्तर प्रदेश चुनाव में समाजवादी पार्टी की रथ यात्रा और प्रियंका गांधी की कोशिश को देखते हुए रथयात्रा निकालने का निर्णय लिया है। इसकी जिम्मेदारी रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के ऊपर आनी है। लेकिन जनता के भीतर से उस तरह का उत्साह नहीं देखने को मिल रहा है।
2021 में ग्राम पंचायतों के चुनाव में भाजपा को काफी नुकसान हुआ था। इसकी वजह भी किसान आंदोलन ही बताए गए थे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान वैसे भी केंद्र सरकार से नाराज हैं और राष्ट्रीय लोकदल को बड़ी संजीवनी देते दिखाई दे रहे हैं। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के नेता पश्चिमी उत्तर प्रदेश की करीब 100 से अधिक सीटों पर भाजपा का सफाया होने का सपना देख रहे थे। बताते हैं यह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए बड़ी चिंता का विषय है।
ऐसे में जनसभाओं में प्रधानमंत्री की लोकप्रियता कम होने या चुनाव प्रचार के दौरान लोगों के विरोध की स्थिति पूरा जायका बिगाड़ सकती थी। उत्तर प्रदेश में इस तरह की स्थिति पूरे देश में भाजपा के प्रभाव पर विपरीत असर डाल सकती थी। माना जा रहा है कि कुछ इन्हीं वजहों, पार्टी के नेताओं की अंदरूनी मांग को देखकर प्रधानमंत्री ने अचानक यह निर्णय लिया है।
क्या अब भाजपा के हित में बन जाएगी बात?
चौधरी हरपाल सिंह जैसे नेता कहते हैं कि अचानक कैसे कुछ बता दें? फैसला तो जनता को करना है। किसान नेता एसपी सिंह का कहना है कि सरकार ने बहुत देर से फैसला लिया। हमारे 700 से अधिक किसान आंदोलन की भेंट चढ़ चुके हैं। उनकी शहादत हुई है। हमने बहुत कुछ खोया है। इसलिए सरकार के लिए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेना भर काफी नहीं है। उसे इस आंदोलन में अपनी जान गंवाने वाले किसानों को मुआवजा देने की घोषणा भी करनी होगी। किसान नेताओं की इस प्रतिक्रिया से लग रहा है कि अभी बहुत आसानी से सबकुछ पटरी पर आने वाला नहीं है। अभी इसके परिणाम आने में समय लगेंगे।
विस्तार
आज 19 नवंबर है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जन्मदिन। गुरुनानक देव का प्राकट्य दिवस, प्रकाश पर्व। सुबह करीब आठ बजे प्रधानमंत्री कार्यालय ने अचानक ट्वीट किया कि देश के प्रधानमंत्री मोदी ठीक एक घंटे बाद 9.00 बजे राष्ट्र को संबोधित करने वाले हैं। प्रधानमंत्री एक खूबसूरत शाल लपेटे राष्ट्र को संबोधित करने आए और डेढ़ साल पहले देश के कृषि क्षेत्र में वैज्ञानिक तरीके से सुधार के वास्ते लाए गए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की औपचारिक घोषणा कर दी। हालांकि संसद के शीतकालीन सत्र में आधिकारिक तौर पर प्रक्रिया के तहक इन्हें वापस लिया जाएगा।
प्रधानमंत्री की इस घोषणा के बाद तीन किसान नेताओं को इसकी सूचना दी। इनमें एक चौधरी हरपाल सिंह भी थे। तीनों नेताओं की नींद की खुमारी अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि इतनी चौंकाने वाली खबर मिल गई। पहले तो उन्हें भरोसा नहीं हुआ। लेकिन जब प्रधानमंत्री की घोषणा के बारे में आश्वस्त हुए तो एक नेता के मुंह से पहली प्रतिक्रिया यही निकली कि सरकार उत्तर प्रदेश चुनाव देखकर किसानों से डर गई। खैर, अंत भला तो सब भला।
सरकार ने टेक दिया घुटना?
पिछले कई महीनों से किसान और किसान नेता एक तरह से ठंडे पड़ गए थे। लखीमपुर खीरी घटना और बाद में पंजाब-हरियाणा के किसान संगठनों में बढ़ी राजनीति नया माहौल बना रही थी। कहा जा सकता है कि किसान देश की सरकार से नाराज थे, लेकिन किसान संगठनों के सहारे केंद्र सरकार पर आंदोलन को लेकर पड़ने वाला दबाव घटता जा रहा था। दिल्ली के पास उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब से आने वाले हाईवे लगे किसानों के टेंट और तंबू की रौनक भी बिल्कुल फीकी चल रही थी, लेकिन सरकार ने अचानक यह निर्णय ले लिया। बजरंग दल के संस्थापक नेता विनय कटियार ने इसे देर आए, दुरुस्त आए बताया। कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल ने भी प्रतिक्रिया दी। राजद के प्रो. मनोज झा ने इसे केंद्र सरकार का घुटने टेकना बताया। आज दिन भर अब मीडिया में किसान आंदोलन की ही खबर चलने की उम्मीद है।
क्या उत्तर प्रदेश चुनाव को देखते हुए डर गई सरकार?
भाजपा के आंतरिक सर्वे तो यही बताते हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह बनारस गए थे। नतीजों में किसानों की नाराजगी बड़ा मुद्दा बनकर उभरी। आजमगढ़ की उनकी जनसभा में जनता में कोई बड़ा उत्साह नहीं दिखाई दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन करने गए, जनता की भागीदारी को लेकर नतीजे अच्छे नहीं आए। प्रस्तावित कार्यक्रम के अनुसार 17-19 नवंबर तक प्रधानमंत्री को बुंदेलखंड, झांसी और उत्तर प्रदेश में ही रहना है। भाजपा ने उत्तर प्रदेश चुनाव में समाजवादी पार्टी की रथ यात्रा और प्रियंका गांधी की कोशिश को देखते हुए रथयात्रा निकालने का निर्णय लिया है। इसकी जिम्मेदारी रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के ऊपर आनी है। लेकिन जनता के भीतर से उस तरह का उत्साह नहीं देखने को मिल रहा है।
2021 में ग्राम पंचायतों के चुनाव में भाजपा को काफी नुकसान हुआ था। इसकी वजह भी किसान आंदोलन ही बताए गए थे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान वैसे भी केंद्र सरकार से नाराज हैं और राष्ट्रीय लोकदल को बड़ी संजीवनी देते दिखाई दे रहे हैं। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के नेता पश्चिमी उत्तर प्रदेश की करीब 100 से अधिक सीटों पर भाजपा का सफाया होने का सपना देख रहे थे। बताते हैं यह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए बड़ी चिंता का विषय है।
ऐसे में जनसभाओं में प्रधानमंत्री की लोकप्रियता कम होने या चुनाव प्रचार के दौरान लोगों के विरोध की स्थिति पूरा जायका बिगाड़ सकती थी। उत्तर प्रदेश में इस तरह की स्थिति पूरे देश में भाजपा के प्रभाव पर विपरीत असर डाल सकती थी। माना जा रहा है कि कुछ इन्हीं वजहों, पार्टी के नेताओं की अंदरूनी मांग को देखकर प्रधानमंत्री ने अचानक यह निर्णय लिया है।
क्या अब भाजपा के हित में बन जाएगी बात?
चौधरी हरपाल सिंह जैसे नेता कहते हैं कि अचानक कैसे कुछ बता दें? फैसला तो जनता को करना है। किसान नेता एसपी सिंह का कहना है कि सरकार ने बहुत देर से फैसला लिया। हमारे 700 से अधिक किसान आंदोलन की भेंट चढ़ चुके हैं। उनकी शहादत हुई है। हमने बहुत कुछ खोया है। इसलिए सरकार के लिए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेना भर काफी नहीं है। उसे इस आंदोलन में अपनी जान गंवाने वाले किसानों को मुआवजा देने की घोषणा भी करनी होगी। किसान नेताओं की इस प्रतिक्रिया से लग रहा है कि अभी बहुत आसानी से सबकुछ पटरी पर आने वाला नहीं है। अभी इसके परिणाम आने में समय लगेंगे।
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