सार
फ्रीबीज योजनाओं में कई ऐसी लुभावनी योजनाएं आती हैं जिनमें नागरिकों को सीधे लाभ पहुंचाया जाता है। रिपोर्ट के अनुसार तेलंगाना राज्य ने इन पर अपने कुल राजस्व का 35 प्रतिशत तक खर्च शुरू कर दिया है। राजस्थान, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, केरल भी 5 से 19 प्रतिशत तक राजस्व इन्हीं पर खर्च कर रहे हैं।
कई राज्यों ने लोक-लुभावन योजनाओं पर अपने खर्च तेजी से बढ़ाने शुरू कर दिए हैं। केंद्र से जीएसटी के बदले मुआवजा मिलने की योजना जब जून में खत्म होगी, उससे उनके लिए परेशानियां बढ़ सकती हैं। उन्हें अपने खर्चों को फिर से निर्धारित करना होगा। जितनी आय हो रही है, उसके अनुसार योजनाएं बनानी पड़ेंगी। यह चिंता और सलाह एसबीआई ने सोमवार को अपनी ताजा आर्थिक रिपोर्ट में सामने रखी।
इसमें राज्य सरकारों द्वारा दी जा रही किसान लोन माफी, पुरानी पेंशन योजना फिर से शुरू करने आदि का संदर्भ दिया गया। एसबीआई में प्रमुख आर्थिक सलाहकार सौम्या कांत घोष ने बताया कि अधिकतर राज्यों की कुल आय में 20 प्रतिशत योगदान केंद्र द्वारा जीएसटी से आ रहा है।
अप्रत्यक्ष करों का दौर खत्म कर जीएसटी लागू करने के साथ 2017 से अगले 5 साल के लिए जीएसटी मुआवजा देने की घोषणा केंद्र ने की थी। यह जून में खत्म हो रही है, राज्य इसे और आगे बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। दूसरी ओर ऐसे समय में भी वे वित्तीय रूप से बनाए रखने में मुश्किल मुफ्त योजनाओं में खर्च बढ़ा रहे हैं। घोष ने कहा कि राज्य कमाई से ज्यादा खर्च न कर राजस्व आय के अनुसार तार्किक खर्च करें, प्राथमिकताओं पर विचार करें।
फ्रीबीज के लिए राजस्व का 35 प्रतिशत तक दिया
फ्रीबीज योजनाओं में कई ऐसी लुभावनी योजनाएं आती हैं जिनमें नागरिकों को सीधे लाभ पहुंचाया जाता है। रिपोर्ट के अनुसार तेलंगाना राज्य ने इन पर अपने कुल राजस्व का 35 प्रतिशत तक खर्च शुरू कर दिया है। राजस्थान, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, केरल भी 5 से 19 प्रतिशत तक राजस्व इन्हीं पर खर्च कर रहे हैं।
हालात
- महामारी से हुए नुकसान के चलते राज्यों की वित्तीय स्थिति पहले से ही डांवाडोल है।
- 18 राज्यों के बजट का विश्लेषण बताता है कि उन्होंने सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के मुकाबले औसत वित्तीय घाटा बजट अनुमान से 0.5 से 4 प्रतिशत तक बढ़ाया है। 6 राज्यों में यह 4 प्रतिशत से भी अधिक है।
बजट 2023 के लक्ष्यों पर प्रश्न
रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2023 के बजट के लिए राज्यों ने 3.4 प्रतिशत तक घाटा रखने के दावे किए हैं। वे ऐसा कर पाएंगे, इस पर कई प्रश्नचिह्न हैं। घाटा कम रखने में सीमित राजस्व आय, वित्तीय अनुशासन बनाए रखने में कमजोरी और कुछ राज्यों का अति-उत्साह आदि वजहें बाधा बन सकती हैं।
विस्तार
कई राज्यों ने लोक-लुभावन योजनाओं पर अपने खर्च तेजी से बढ़ाने शुरू कर दिए हैं। केंद्र से जीएसटी के बदले मुआवजा मिलने की योजना जब जून में खत्म होगी, उससे उनके लिए परेशानियां बढ़ सकती हैं। उन्हें अपने खर्चों को फिर से निर्धारित करना होगा। जितनी आय हो रही है, उसके अनुसार योजनाएं बनानी पड़ेंगी। यह चिंता और सलाह एसबीआई ने सोमवार को अपनी ताजा आर्थिक रिपोर्ट में सामने रखी।
इसमें राज्य सरकारों द्वारा दी जा रही किसान लोन माफी, पुरानी पेंशन योजना फिर से शुरू करने आदि का संदर्भ दिया गया। एसबीआई में प्रमुख आर्थिक सलाहकार सौम्या कांत घोष ने बताया कि अधिकतर राज्यों की कुल आय में 20 प्रतिशत योगदान केंद्र द्वारा जीएसटी से आ रहा है।
अप्रत्यक्ष करों का दौर खत्म कर जीएसटी लागू करने के साथ 2017 से अगले 5 साल के लिए जीएसटी मुआवजा देने की घोषणा केंद्र ने की थी। यह जून में खत्म हो रही है, राज्य इसे और आगे बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। दूसरी ओर ऐसे समय में भी वे वित्तीय रूप से बनाए रखने में मुश्किल मुफ्त योजनाओं में खर्च बढ़ा रहे हैं। घोष ने कहा कि राज्य कमाई से ज्यादा खर्च न कर राजस्व आय के अनुसार तार्किक खर्च करें, प्राथमिकताओं पर विचार करें।
फ्रीबीज के लिए राजस्व का 35 प्रतिशत तक दिया
फ्रीबीज योजनाओं में कई ऐसी लुभावनी योजनाएं आती हैं जिनमें नागरिकों को सीधे लाभ पहुंचाया जाता है। रिपोर्ट के अनुसार तेलंगाना राज्य ने इन पर अपने कुल राजस्व का 35 प्रतिशत तक खर्च शुरू कर दिया है। राजस्थान, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, केरल भी 5 से 19 प्रतिशत तक राजस्व इन्हीं पर खर्च कर रहे हैं।
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