रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को 35 दिन से ज्यादा हो गए। दोनों देशों में से कोई भी एक दूसरे के सामने झुकने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में अमेरिका क्या कर रहा है? पढ़िए अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता जेड तरार की अमर उजाला डॉट कॉम के साथ विशेष बातचीत…
रूस-यूक्रेन युद्ध के मामले में भारत की रणनीति तटस्थ है। भारत ने हमेशा कहा कि रूस और यूक्रेन बातचीत के जरिए विवाद को खत्म करें। संयुक्त राष्ट्र में वोटिंग के दौरान भी भारत हमेशा गैरहाजिर रहा। इस पर आरोप लगे कि भारत तटस्थ होकर कहीं न कहीं रूस का साथ दे रहा है।
उधर, अमेरिका समेत तमाम नाटो देश रूस के खिलाफ खड़े हो गए। इन देशों से भारत के काफी मजबूत संबंध हैं। यही कारण है कि पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भारत के लिए कहा था, ‘रूस पर प्रतिबंध लगाने में भारत नरम पड़ गया, जबकि अमेरिका के बाकी साथियों ने रूस की हिमाकत के लिए उसे कड़ी सजा दी।’
हालांकि, बाइडेन के इस बयान के बाद अमेरिकी विदेश विभाग की तरफ से डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश हुई। कहा गया कि भारत उसका महत्वपूर्ण भागीदार है। इसके बावजूद सवाल उठा कि क्या इस तरह के बयान देकर यूक्रेन की मदद करने के लिए भारत पर अमेरिका दबाव डाल रहा है?
खैर, सवाल तो अमेरिका पर भी उठा। कहा गया कि रूस-यूक्रेन के युद्ध के पीछे अमेरिका का ही हाथ है। तभी तो दूसरे देशों के बीच हमेशा मध्यस्थता की बात करने वाला अमेरिका इस युद्ध को रोकने के लिए आगे नहीं बढ़ रहा। सवाल हुआ कि अगर ऐसा नहीं है तो राष्ट्रपति बाइडेन खुद रूस के राष्ट्रपति पुतिन से बात क्यों नहीं करते?
1. रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह क्या है, पुतिन क्या चाहते हैं?
जेड तरार: हमें ऐसा लग रहा है कि व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन को नीचे रखना चाहते हैं। उसे बर्बाद करना चाहते हैं। युद्ध के एलान के वक्त ही राष्ट्रपति पुतिन ने यह साफ कह दिया था कि यूक्रेन आजाद देश नहीं होना चाहिए। वो कहते हैं जब सोवियत संघ का विघटन हुआ, तब भी यूक्रेन को आजादी नहीं मिलनी चाहिए थी। पुतिन यूक्रेन को रूस का हिस्सा बनाना चाहते हैं। एक ताकतवर देश होने के नाते वह समझते हैं कि उनका पड़ोसी देश आजाद नहीं होना चाहिए।
2. रूस-यूक्रेन युद्ध के पीछे क्या अमेरिका का हाथ है, बाइडेन ने ही जेलेंस्की को नाटो में शामिल होने का इशारा किया और रूस को उकसाया?
तरार: मैं हैरान हूं। भारत का मीडिया एक तरह से पुतिन का समर्थन कर रहा है। नाटो की जो बात कही जा रही है, वो अजीबो-गरीब है। अगर पुतिन ये कहते हैं कि नाटो ने उनपर आक्रमक रूख अपनाया है तो ये गलत है। आप कहते हो कि नाटो यूक्रेन के करीब जा रहा है और इसलिए आपने उस पर हमला कर दिया। ऐसे में आप खुद यूक्रेन को नाटो के नजदीक ला रहे हैं। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की कभी नहीं चाहते थे कि वे नाटो का हिस्सा बनें। हां, वे पश्चिमी देशों के साथ अच्छे रिश्ते जरूर चाहते हैं, जैसे भारत के हैं।
3. अमेरिका युद्ध रोकना चाहता है या बढ़ाना चाहता है?
तरार: दूसरे विश्व युद्ध के बाद यह पहली बार देख रहे हैं कि एक ताकतवर देश अपने पड़ोसी देश पर हमला कर रहा है। हम सौ फीसदी यूक्रेन के साथ खड़े हैं। हम ये देख रहे हैं कि यूक्रेन से क्या संकेत मिल रहे हैं? जेलेंस्की से हम बार-बार ये पूछते हैं कि आप क्या चाहते हैं? जेलेंस्की हमेशा यह कह रहे हैं कि वे युद्ध नहीं चाहते। यही हकीकत है। जब यूक्रेन खुद युद्ध नहीं चाहता तो हम पर आरोप लगाना बेकार की बात है।
4. युद्ध रोकने के लिए बाइडेन खुद क्यों नहीं पुतिन से बात करते हैं?
तरार: हमला यूक्रेन पर हो रहा है। हमला करने वाला रूस है। हर रोज पुतिन के हाथों लोग मर रहे हैं। वे बच्चों, बीमार लोगों को निशाना बना रहे हैं। लगातार मिसाइलें दागी जा रही हैं। ऐसे में शांति के लिए बातचीत कैसे हो सकती है? फिर यह अजीब बात है कि राष्ट्रपति बाइडेन फोन करके पुतिन को कहें कि युद्ध रोक दें। क्या आपको लगता है कि ऐसा करने से पुतिन शांत हो जाएंगे?
लोग सोच रहे हैं कि अमेरिका के कहने पर रूस युद्ध बंद कर देगा। हमने कई बार कोशिश की है, लेकिन कुछ नहीं हुआ क्योंकि पुतिन खुद कह रहे हैं कि वह यूक्रेन को बर्बाद कर देंगे। वे सोच चुके हैं कि उन्हें क्या करना है। ऐसी स्थिति में कोई उन्हें कैसे फोन करके कह सकता है कि युद्ध रोक दें?
5. बाइडन ने पुतिन को सत्ता से हटाने को लेकर बयान दिया, बाद में विदेश मंत्रालय ने सफाई दी। क्या अमेरिकी राष्ट्रपति स्थिति का सही तरीके से आकलन नहीं कर पाए? आपको नहीं लगता कि इससे बाइडन ने रूसी जनता को एकजुट करने का काम किया?
तरार: हमने राष्ट्रपति बाइडेन का बयान आने के बाद अपनी नीति के बारे में लोगों को बताया। प्रेसिडेंट बाइडेन ने जो कहा, वो उनके दिल की बात थी। लेकिन यह भी साफ है कि हम किसी देश के राष्ट्रपति या नेता को हटाने की नीति बिल्कुल नहीं रखते हैं। ये हमारी नीति नहीं है और ना ही कभी होगी।
6. अमेरिका की रूस से क्या दुश्मनी है?
तरार: रूस और रूस के लोगों के साथ अमेरिका की कोई दुश्मनी नहीं है। अगर आप सोवियत यूनियन के बाद देखें तो जो दरवाजे हमने रूस के लिए खोले थे, उससे वह बहुत मजबूत हुआ है। पिछले सालों में भी हमने बहुत कोशिश की है कि रूस के साथ हम खड़े हो जाएं और कोई दुश्मनी न हो। यह भी गलत बात है कि हम पश्चिमी देश और नाटो के देश रूस को नीचे रखना चाहते हैं। कोई ऐसी बात नहीं है। अफसोस की बात यह है कि जो आर्थिक प्रतिबंध रूस पर लगाए जा रहे हैं, उसका नुकसान सिर्फ पुतिन को नहीं हो रहा, बल्कि वहां के लोगों को भी हो रहा।
7. रूस बार-बार परमाणु हमले की धमकी दे रहा है। अगर ऐसी स्थिति बनती है तब अमेरिका का क्या कदम होगा?
तरार: यह गैरजिम्मेदाराना बयान है। परमाणु हथियार का कभी इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। अगर ऐसा हुआ तो उसमें कोई नहीं जीतेगा, बल्कि पूरी दुनिया बर्बाद हो जाएगी। अमेरिका की नीति साफ है कि इसका इस्तेमाल कभी नहीं होना चाहिए।
8. रूस कहता है कि हम युद्ध विराम करेंगे और फिर अगले ही पल उनकी मिसाइलें यूक्रेन के शहरों को बर्बाद करने लगती हैं?
तरार: वे एक तरह से वक्त की नजाकत को देखकर कदम उठा रहे हैं। इसके जरिए वे अंतरराष्ट्रीय दबाव कम करना चाहते हैं। इसके साथ ही वे यूक्रेन पर पूरी तरह से कब्जा करना चाहते हैं। युद्ध विराम की बातें एक तरह से दिखावा हैं। इन्होंने मरियापोल में सीरिया वाली रणनीति अपनाई। मरियापोल में ये अंदर तक नहीं जा पाए तो इन्होंने उसे पूरी तरह से बर्बाद कर दिया। मेरे पास जो रिपोर्ट है उसके मुताबिक मरियापोल में 90 फीसदी इमारतें और घर तबाह हो चुके हैं।
9. शरणार्थियों के लिए अमेरिका क्या मदद कर रहा है?
तरार: हम एक अरब डॉलर से ज्यादा की आर्थिक मदद पोलैंड और यूरोप के अन्य देशों को दे चुके हैं। मानवीय आधारों पर हर तरह से यूक्रेन के लोगों की मदद करेंगे। पूरी दुनिया की यह जिम्मेदारी है कि कैसे हम यूक्रेन के लोगों की मदद करें।
तरार: नहीं, यह बात बिल्कुल गलत है। भारत पर कोई दबाव नहीं है कि वो हमारा साथ दे। हम समझते हैं कि हर देश की अपनी अलग नीति होती है और वह उसी के अनुसार फैसला लेता है। भारत और अमेरिका में बहुत मजबूत दोस्ती है। प्रेसिडेंट बाइडेन हमेशा बोलते हैं कि हमारी दोस्ती बहुत मजबूत है। लेकिन जो यूक्रेन में हो रहा है, उससे भी कोई इंकार नहीं कर सकता है।
किसी एक देश की तरफ आने के मामले में तटस्थ रहना ठीक है, लेकिन हकीकत को इंकार करना ठीक नहीं है। मैं भारतीय मीडिया को देखता हूं तो वो कहते हैं कि शायद रूस के सामने कोई और रास्ता नहीं बचा था इसलिए उसने यूक्रेन पर हमला किया। यह गलत है। एक ताकतवर देश अपने कमजोर पड़ोसी पर हमला करता है तो क्या हम चुप रहेंगे? मेरे हिसाब से नहीं, यही बात पूरी दुनिया को समझनी चाहिए।
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रूस-यूक्रेन युद्ध के मामले में भारत की रणनीति तटस्थ है। भारत ने हमेशा कहा कि रूस और यूक्रेन बातचीत के जरिए विवाद को खत्म करें। संयुक्त राष्ट्र में वोटिंग के दौरान भी भारत हमेशा गैरहाजिर रहा। इस पर आरोप लगे कि भारत तटस्थ होकर कहीं न कहीं रूस का साथ दे रहा है।
उधर, अमेरिका समेत तमाम नाटो देश रूस के खिलाफ खड़े हो गए। इन देशों से भारत के काफी मजबूत संबंध हैं। यही कारण है कि पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भारत के लिए कहा था, ‘रूस पर प्रतिबंध लगाने में भारत नरम पड़ गया, जबकि अमेरिका के बाकी साथियों ने रूस की हिमाकत के लिए उसे कड़ी सजा दी।’
हालांकि, बाइडेन के इस बयान के बाद अमेरिकी विदेश विभाग की तरफ से डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश हुई। कहा गया कि भारत उसका महत्वपूर्ण भागीदार है। इसके बावजूद सवाल उठा कि क्या इस तरह के बयान देकर यूक्रेन की मदद करने के लिए भारत पर अमेरिका दबाव डाल रहा है?
खैर, सवाल तो अमेरिका पर भी उठा। कहा गया कि रूस-यूक्रेन के युद्ध के पीछे अमेरिका का ही हाथ है। तभी तो दूसरे देशों के बीच हमेशा मध्यस्थता की बात करने वाला अमेरिका इस युद्ध को रोकने के लिए आगे नहीं बढ़ रहा। सवाल हुआ कि अगर ऐसा नहीं है तो राष्ट्रपति बाइडेन खुद रूस के राष्ट्रपति पुतिन से बात क्यों नहीं करते?