अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
Published by: देव कश्यप
Updated Tue, 10 Aug 2021 03:44 AM IST
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बांबे हाईकोर्ट में दो याचिकाकर्ताओं ने नए आईटी कानूनों को चुनौती दी है। समाचार पोर्टल द लीफलेट और पत्रकार निखिल वागले ने कोर्ट में दायर याचिका में कहा है कि आईटी नियमों का प्रेस की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी पर घातक असर पड़ेगा। द लीफलेट की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील डेरियस खंबाटा ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी की पीठ से नए नियमों के कार्यान्वयन पर तुरंत रोक लगाने की मांग की।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि नए नियमों में नागरिकों, पत्रकारों, डिजिटल समाचार पोर्टलों द्वारा ऑनलाइन प्रकाशित सामग्री पर कई तरह की पाबंदियां लगाई गई हैं। उन्होंने कहा कि सामग्री के नियमन और उत्तरदायित्व की मांग करना ऐसे मापदंडों पर आधारित है जो अस्पष्ट हैं और वर्तमान आईटी नियमों के प्रावधानों तथा संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के परे हैं। खम्बाटा ने कहा, ऐसा पहली बार हो रहा है कि सामग्री पर खुलकर प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं।
यह नियम आईटी कानून के मापदंडों से परे जाते हैं। इसके साथ ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से जवाबदेही और शिकायत निवारण का भी प्रावधान किया गया है। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि सामग्री को विनियमित करने और जवाबदेही की मांग का आधार उन मापदंडों पर आधारित है जो अस्पष्ट हैं और मौजूदा आईटी अधिनियम के प्रावधानों और अनुच्छेद 19 के तहत बोलने की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार से परे है।
अधिवक्ता डेरियस खंबाटा ने कहा कि नियम मीडिया संगठनों को बिना सबूत के स्टिंग ऑपरेशन करने से रोकते हैं। वे मांग करते हैं कि किसी भी सार्वजनिक व्यक्तित्व के खिलाफ कोई मानहानिकारक सामग्री प्रकाशित न हो। हालांकि, नियम यह परिभाषित नहीं करते हैं कि पर्याप्त सबूत किसे माना जाएगा या मानहानिकारक सामग्री के रूप में किन चीजों को अंतिम रूप दिया गया है। वहीं, वागले की ओर से पेश हुए वकील अभय नेवागी ने अदालत से कहा कि यह नियम अविवेकपूर्ण, अवैध और नागरिकों के निजता के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विरुद्ध हैं। यह नियम नेट-न्यूट्रलिटी के सिद्धांत के भी खिलाफ हैं और यह सेंसरशिप का एक रूप है।