वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, काबुल
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Tue, 10 Aug 2021 06:13 PM IST
सार
अमेरिका की घोषित नीति के मुताबिक 31 अगस्त को उसकी और नाटो (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) की फौज की वापसी पूरी होने के बाद वह व्यापक रूप से हवाई बमबारी नहीं करेगा। उसके बाद वह तभी ऐसी कार्रवाई करेगा, जब उसे किसी आतंकवादी ठिकाने के बारे में ठोस जानकारी मिलेगी…
अफगानिस्तान में इलाकों को कब्जा करने के मामले में तालिबान जिस तेजी से आगे बढ़ रहा है, उससे पश्चिमी देशों के सुरक्षा विशेषज्ञ भी हैरत में हैं। पश्चिमी मीडिया की कई टिप्पणियों में कहा गया है कि तालिबान आगे बढ़ेगा, ये अनुमान तो था, लेकिन यह इतनी तेजी से होगा, इसका अंदाजा पहले नहीं था। पिछले कुछ दिनों के अंदर अफगानिस्तान के पांच प्रांतों की राजधानियों पर तालिबान का कब्जा हो गया है। इनमें कुंदूज जैसा बड़ा शहर भी शामिल है। खबरों के मुताबिक एक और बड़े शहर गजनी पर तालिबान के कब्जे का खतरा मंडरा रहा है।
विश्लेषकों का कहना है कि तालिबान देहाती इलाकों में अपने पांव फैला लेगा, यह तो माना जा रहा था। इसकी वजह यह है कि उन इलाकों में उसके लिए समर्थन ज्यादा है। लेकिन वह शहरों पर जितनी जल्दी काबिज होने लगा है, उससे हैरत हुई है। अब पश्चिमी, खासकर अमेरिकी रणनीतिकारों को उम्मीद है कि अमेरिकी वायु सेना की बमबारी से तालिबान को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया जाएगा। लेकिन अंदेशा यह है कि अंधाधुंध बमबारी से बड़ी संख्या में निर्दोष लोग भी हताहत हो सकते हैं।
दूसरी समस्या यह है कि अमेरिका की घोषित नीति के मुताबिक 31 अगस्त को उसकी और नाटो (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) की फौज की वापसी पूरी होने के बाद वह व्यापक रूप से हवाई बमबारी नहीं करेगा। उसके बाद वह तभी ऐसी कार्रवाई करेगा, जब उसे किसी आतंकवादी ठिकाने के बारे में ठोस जानकारी मिलेगी। ऐसे में अगर आखिरी वक्त में अमेरिका ने अपनी नीति नहीं बदली, तो अगले 21 दिन में बमबारी से जो कामयाबी हासिल होगी, मुमकिन है कि वह सितंबर में खत्म हो जाए।
विश्लेषकों का कहना है कि अफगानिस्तान में अब उन लाखों लोगों के लिए डरावने हालात बन चुके हैं, जो तालिबान का राज नहीं चाहते हैं। उनकी ये आशंका हर गुजरते दिन के साथ गहराती जा रही है कि तालिबान काबुल की सत्ता पर कब्जा कर लेगा और उसके बाद वह सख्त इस्लामी राज लागू कर देगा। पर्यवेक्षकों के मुताबिक तालिबान की रणनीति काबुल पर हमला करने से पहले उसके आसपास के शहरों पर कब्जा जमा लेने की है। इस तरह काबुल पर घेरा डालने की स्थिति में आ जाएगा।
काबुल की आबादी 60 लाख बताई जाती है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक यहां के लोगों में अमेरिका को लेकर विरोध भाव पल रहा है। ये आम शिकायत है कि अमेरिका ने 20 साल तक देश को युद्ध जैसे हालात में झोंके रखा और अब वह यहां के बाशिंदों को बेसहारा छोड़ कर वापस जा रहा है।
अफगान विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों ने अफगानिस्तान में भ्रष्ट और अलोकतांत्रिक शासकों को समर्थन दिया। इस दौरान जो शासक यहां रहे, वे अफगान जनता का भरोसा नहीं जीत सके। दूरदराज के इलाकों में तालिबान के लिए समर्थन गुजरे 20 वर्षों में भी कायम रहा। इसलिए तालिबान की जड़ें मजबूत थीं। अब तालिबान ने उसी के भरोसे पूरे देश पर कब्जा जमा लेने का अभियान तेज कर दिया है, जिसमें उसे अपेक्षा से जल्दी कामयाबी मिल रही है।
विस्तार
अफगानिस्तान में इलाकों को कब्जा करने के मामले में तालिबान जिस तेजी से आगे बढ़ रहा है, उससे पश्चिमी देशों के सुरक्षा विशेषज्ञ भी हैरत में हैं। पश्चिमी मीडिया की कई टिप्पणियों में कहा गया है कि तालिबान आगे बढ़ेगा, ये अनुमान तो था, लेकिन यह इतनी तेजी से होगा, इसका अंदाजा पहले नहीं था। पिछले कुछ दिनों के अंदर अफगानिस्तान के पांच प्रांतों की राजधानियों पर तालिबान का कब्जा हो गया है। इनमें कुंदूज जैसा बड़ा शहर भी शामिल है। खबरों के मुताबिक एक और बड़े शहर गजनी पर तालिबान के कब्जे का खतरा मंडरा रहा है।
विश्लेषकों का कहना है कि तालिबान देहाती इलाकों में अपने पांव फैला लेगा, यह तो माना जा रहा था। इसकी वजह यह है कि उन इलाकों में उसके लिए समर्थन ज्यादा है। लेकिन वह शहरों पर जितनी जल्दी काबिज होने लगा है, उससे हैरत हुई है। अब पश्चिमी, खासकर अमेरिकी रणनीतिकारों को उम्मीद है कि अमेरिकी वायु सेना की बमबारी से तालिबान को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया जाएगा। लेकिन अंदेशा यह है कि अंधाधुंध बमबारी से बड़ी संख्या में निर्दोष लोग भी हताहत हो सकते हैं।
दूसरी समस्या यह है कि अमेरिका की घोषित नीति के मुताबिक 31 अगस्त को उसकी और नाटो (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) की फौज की वापसी पूरी होने के बाद वह व्यापक रूप से हवाई बमबारी नहीं करेगा। उसके बाद वह तभी ऐसी कार्रवाई करेगा, जब उसे किसी आतंकवादी ठिकाने के बारे में ठोस जानकारी मिलेगी। ऐसे में अगर आखिरी वक्त में अमेरिका ने अपनी नीति नहीं बदली, तो अगले 21 दिन में बमबारी से जो कामयाबी हासिल होगी, मुमकिन है कि वह सितंबर में खत्म हो जाए।
विश्लेषकों का कहना है कि अफगानिस्तान में अब उन लाखों लोगों के लिए डरावने हालात बन चुके हैं, जो तालिबान का राज नहीं चाहते हैं। उनकी ये आशंका हर गुजरते दिन के साथ गहराती जा रही है कि तालिबान काबुल की सत्ता पर कब्जा कर लेगा और उसके बाद वह सख्त इस्लामी राज लागू कर देगा। पर्यवेक्षकों के मुताबिक तालिबान की रणनीति काबुल पर हमला करने से पहले उसके आसपास के शहरों पर कब्जा जमा लेने की है। इस तरह काबुल पर घेरा डालने की स्थिति में आ जाएगा।
काबुल की आबादी 60 लाख बताई जाती है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक यहां के लोगों में अमेरिका को लेकर विरोध भाव पल रहा है। ये आम शिकायत है कि अमेरिका ने 20 साल तक देश को युद्ध जैसे हालात में झोंके रखा और अब वह यहां के बाशिंदों को बेसहारा छोड़ कर वापस जा रहा है।
अफगान विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों ने अफगानिस्तान में भ्रष्ट और अलोकतांत्रिक शासकों को समर्थन दिया। इस दौरान जो शासक यहां रहे, वे अफगान जनता का भरोसा नहीं जीत सके। दूरदराज के इलाकों में तालिबान के लिए समर्थन गुजरे 20 वर्षों में भी कायम रहा। इसलिए तालिबान की जड़ें मजबूत थीं। अब तालिबान ने उसी के भरोसे पूरे देश पर कब्जा जमा लेने का अभियान तेज कर दिया है, जिसमें उसे अपेक्षा से जल्दी कामयाबी मिल रही है।
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