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अपने हितों की रक्षा और राहुल गांधी की मंशा रोकने के लिए छोड़ा गया पत्र बम

राहुल गांधी (फाइल फोटो)
– फोटो : पीटीआई


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संकट प्रबंधन के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पुडुचेरी के मुख्यमंत्री वी नारायण सामी समेत कई नेताओं ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी के प्रति पूरा भरोसा जताते हुए ट्वीट किए हैं। दूसरी तरफ नेहरू गांधी परिवार के बेहद पुराने वफादार एक कांग्रेसी नेता के मुताबिक पत्र लिखवाने वालों ने 300 से ज्यादा बड़े छोटे नेताओं के हस्ताक्षर करवाए हैं, लेकिन सार्वजनिक सिर्फ 23 नाम किए गए हैं, जिससे पार्टी के टूटने का खतरा न हो। राहुल के करीबी लोगों का मानना है कि यह पत्र बम इसलिए चलाया गया है कि सोमवार को होने वाली कार्यसमिति की बैठक में अगर सोनिया गांधी के उत्तराधिकारी के रूप में किसी गैर गांधी को अध्यक्ष बनाने की बात चलती है तो राहुल गांधी के पसंद के व्यक्ति को अध्यक्ष बनने से रोका जा सके। 

साथ ही पत्र पर दस्तखत करने वाले नेताओं ने यह दबाव भी बनाया है कि भविष्य में होने वाले किसी भी फेरबदल में उनका पूरा ध्यान रखा जाए। कांग्रेस सूत्रों का यह भी कहना है कि इस पत्र को पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा और कपिल सिब्बल ने ड्राफ्ट किया और इसे पूर्व केंद्रीय मंत्री व राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद और वीरप्पा मोईली ने भी देखा और अपनी मंजूरी दी। नई दिल्ली की सबसे मंहगी आवासीय कॉलोनी की एक कोठी में इस पत्र को लिखने की रणनीति बनी, जिसमें हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप शर्मा भी मौजूद थे। बाद में इस पर दूसरे नेताओं के दस्तखत कराए गए। 

सूत्रों का यह भी कहना है कि इस पत्र को लिखवाने में कांग्रेस के एक अन्य दिग्गज नेता का भी आशीर्वाद प्राप्त है। इन सभी नेताओं का मानना है कि सोनिया गांधी अपनी क्षमता और योग्यता से पार्टी को जहां ले जा सकती थीं, ले जा चुकीं। राहुल गांधी को लेकर जनता में जो धारणा बनी है उससे 2024 में भी कांग्रेस जीत पाएगी इसमें संदेह है। प्रियंका गांधी भी वह करिश्मा नहीं दिखा पा रही हैं जिसकी अपेक्षा थी। ऐसे में कांग्रेस को मोदी की भाजपा के मुकाबले खड़ा करने के लिए गैर गांधी अध्यक्ष जरूरी है और यह गैर गांधी अध्यक्ष राहुल गांधी की पसंद का नहीं सब वरिष्ठ नेताओं की सहमति से होना चाहिए। 
 
कांग्रेस के एक दिग्गज नेता का कहना है कि यह पत्र बम दरअसल उन नेताओं ने अपने बचाव में छोड़ा है जो खुद पिछले दो दशक से पार्टी और सरकार के तमाम पदों पर काबिज रहे हैं और उनके क्रियाकलापों ने ही पार्टी को इस दुर्दशा तक पहुंचाया है। इस दिग्गज कांग्रेसी नेता ने कहा कि जितने नेताओं के हस्ताक्षर हैं उन सबको पिछले बीस सालों में पार्टी के हर स्तर पर पदों पर रहने का मौका मिला। लेकिन उन्होंने पार्टी को आगे ले जाने में कितना योगदान किया यह सामने है। इस नेता के मुताबिक इन 23 नेताओं में एक भी नेता एसा नहीं है जिसे वंचित समूह का माना जाए। जबकि पार्टी के कई नेता जिनके अंदर योग्यता निष्ठा और क्षमता सब है, वर्षों से दरकिनार हैं। लेकिन उनमें से किसी ने अभी तक कोई एसा कदम नहीं उठाया जो नेतृत्व की कार्यशैली पर सवाल उठाता हो। इससे जाहिर है कि पत्र लिखने और लिखने वालों का असली उद्देश्य पार्टी हित है या अपना स्वार्थ।

दूसरी तरफ राहुल गांधी के करीबी एक युवा नेता के मुताबिक यह तय है कि राहुल गांधी फिलहाल पार्टी अध्यक्ष पद स्वीकार नहीं करेंगे। लेकिन वह यह जरूर चाहेंगे कि नया अध्यक्ष अपेक्षाकृत युवा हो और उनकी पसंद का हो जो संगठन में उन सारे बदलावों को अंजाम दे सके जो राहुल गांधी चाहते रहे हैं। इसलिए इस पत्र के जरिए पुराने नेताओं ने सोनिया गांधी पर यह दबाव बनाने की कोशिश की है कि वह राहुल गांधी की पसंद के व्यक्ति के पक्ष में अपना मत न दें और नए अध्यक्ष के चयन का जिम्मा वरिष्ठ नेताओं पर छोड़ दें। राहुल के इस करीबी युवा नेता के मुताबिक अगर एसा हुआ तो कुछ बड़े नेताओं की एक जमात अपनी पसंद का अध्यक्ष बनाकर पार्टी को अपने हिसाब से चलाएगी।

वहीं पत्र लिखने वाले नेता प्रकट रूप में कोई बयान नहीं दे रहे हैं, लेकिन निजी बातचीत में कहते हैं कि उन्हें सोनिया राहुल और प्रियंका के अध्यक्ष बनने पर कोई एतराज नहीं है। लेकिन अगर गैर गांधी अध्यक्ष ही बनना है तो केसी वेणुगोपाल जैसे नेता को अगर राहुल गांधी पार्टी पर थोपना चाहेंगे तो वह मंजूर नहीं होगा। जबकि माना जा रहा है राहुल गांधी की पसंद केसी वेणुगोपाल हैं। पत्र लिखने वाले खेमे के एक प्रखर नेता के मुताबिक अगर किसी गैर गांधी के नाम पर सहमति नहीं बनी तो अध्यक्ष के चुनाव के लिए भी मांग तेज हो सकती है। हालांकि अहमद पटेल, गुलाम नबी आजाद जैसे वरिष्ठ नेता कोशिश करेंगे कि चुनाव की नौबत न आए और सहमति से ही कोई नया अध्यक्ष बने।

सार

कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक से ठीक पहले संगठन में ऊपर से नीचे तक हलचल मचा देने वाले पार्टी के 23 वरिष्ठ नेताओं के पत्र बम से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी बेहद आहत हैं तो कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी बेहद नाराज बताए जा रहे हैं।

विस्तार

संकट प्रबंधन के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पुडुचेरी के मुख्यमंत्री वी नारायण सामी समेत कई नेताओं ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी के प्रति पूरा भरोसा जताते हुए ट्वीट किए हैं। दूसरी तरफ नेहरू गांधी परिवार के बेहद पुराने वफादार एक कांग्रेसी नेता के मुताबिक पत्र लिखवाने वालों ने 300 से ज्यादा बड़े छोटे नेताओं के हस्ताक्षर करवाए हैं, लेकिन सार्वजनिक सिर्फ 23 नाम किए गए हैं, जिससे पार्टी के टूटने का खतरा न हो। राहुल के करीबी लोगों का मानना है कि यह पत्र बम इसलिए चलाया गया है कि सोमवार को होने वाली कार्यसमिति की बैठक में अगर सोनिया गांधी के उत्तराधिकारी के रूप में किसी गैर गांधी को अध्यक्ष बनाने की बात चलती है तो राहुल गांधी के पसंद के व्यक्ति को अध्यक्ष बनने से रोका जा सके। 

साथ ही पत्र पर दस्तखत करने वाले नेताओं ने यह दबाव भी बनाया है कि भविष्य में होने वाले किसी भी फेरबदल में उनका पूरा ध्यान रखा जाए। कांग्रेस सूत्रों का यह भी कहना है कि इस पत्र को पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा और कपिल सिब्बल ने ड्राफ्ट किया और इसे पूर्व केंद्रीय मंत्री व राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद और वीरप्पा मोईली ने भी देखा और अपनी मंजूरी दी। नई दिल्ली की सबसे मंहगी आवासीय कॉलोनी की एक कोठी में इस पत्र को लिखने की रणनीति बनी, जिसमें हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप शर्मा भी मौजूद थे। बाद में इस पर दूसरे नेताओं के दस्तखत कराए गए। 

सूत्रों का यह भी कहना है कि इस पत्र को लिखवाने में कांग्रेस के एक अन्य दिग्गज नेता का भी आशीर्वाद प्राप्त है। इन सभी नेताओं का मानना है कि सोनिया गांधी अपनी क्षमता और योग्यता से पार्टी को जहां ले जा सकती थीं, ले जा चुकीं। राहुल गांधी को लेकर जनता में जो धारणा बनी है उससे 2024 में भी कांग्रेस जीत पाएगी इसमें संदेह है। प्रियंका गांधी भी वह करिश्मा नहीं दिखा पा रही हैं जिसकी अपेक्षा थी। ऐसे में कांग्रेस को मोदी की भाजपा के मुकाबले खड़ा करने के लिए गैर गांधी अध्यक्ष जरूरी है और यह गैर गांधी अध्यक्ष राहुल गांधी की पसंद का नहीं सब वरिष्ठ नेताओं की सहमति से होना चाहिए। 
 
कांग्रेस के एक दिग्गज नेता का कहना है कि यह पत्र बम दरअसल उन नेताओं ने अपने बचाव में छोड़ा है जो खुद पिछले दो दशक से पार्टी और सरकार के तमाम पदों पर काबिज रहे हैं और उनके क्रियाकलापों ने ही पार्टी को इस दुर्दशा तक पहुंचाया है। इस दिग्गज कांग्रेसी नेता ने कहा कि जितने नेताओं के हस्ताक्षर हैं उन सबको पिछले बीस सालों में पार्टी के हर स्तर पर पदों पर रहने का मौका मिला। लेकिन उन्होंने पार्टी को आगे ले जाने में कितना योगदान किया यह सामने है। इस नेता के मुताबिक इन 23 नेताओं में एक भी नेता एसा नहीं है जिसे वंचित समूह का माना जाए। जबकि पार्टी के कई नेता जिनके अंदर योग्यता निष्ठा और क्षमता सब है, वर्षों से दरकिनार हैं। लेकिन उनमें से किसी ने अभी तक कोई एसा कदम नहीं उठाया जो नेतृत्व की कार्यशैली पर सवाल उठाता हो। इससे जाहिर है कि पत्र लिखने और लिखने वालों का असली उद्देश्य पार्टी हित है या अपना स्वार्थ।

दूसरी तरफ राहुल गांधी के करीबी एक युवा नेता के मुताबिक यह तय है कि राहुल गांधी फिलहाल पार्टी अध्यक्ष पद स्वीकार नहीं करेंगे। लेकिन वह यह जरूर चाहेंगे कि नया अध्यक्ष अपेक्षाकृत युवा हो और उनकी पसंद का हो जो संगठन में उन सारे बदलावों को अंजाम दे सके जो राहुल गांधी चाहते रहे हैं। इसलिए इस पत्र के जरिए पुराने नेताओं ने सोनिया गांधी पर यह दबाव बनाने की कोशिश की है कि वह राहुल गांधी की पसंद के व्यक्ति के पक्ष में अपना मत न दें और नए अध्यक्ष के चयन का जिम्मा वरिष्ठ नेताओं पर छोड़ दें। राहुल के इस करीबी युवा नेता के मुताबिक अगर एसा हुआ तो कुछ बड़े नेताओं की एक जमात अपनी पसंद का अध्यक्ष बनाकर पार्टी को अपने हिसाब से चलाएगी।

वहीं पत्र लिखने वाले नेता प्रकट रूप में कोई बयान नहीं दे रहे हैं, लेकिन निजी बातचीत में कहते हैं कि उन्हें सोनिया राहुल और प्रियंका के अध्यक्ष बनने पर कोई एतराज नहीं है। लेकिन अगर गैर गांधी अध्यक्ष ही बनना है तो केसी वेणुगोपाल जैसे नेता को अगर राहुल गांधी पार्टी पर थोपना चाहेंगे तो वह मंजूर नहीं होगा। जबकि माना जा रहा है राहुल गांधी की पसंद केसी वेणुगोपाल हैं। पत्र लिखने वाले खेमे के एक प्रखर नेता के मुताबिक अगर किसी गैर गांधी के नाम पर सहमति नहीं बनी तो अध्यक्ष के चुनाव के लिए भी मांग तेज हो सकती है। हालांकि अहमद पटेल, गुलाम नबी आजाद जैसे वरिष्ठ नेता कोशिश करेंगे कि चुनाव की नौबत न आए और सहमति से ही कोई नया अध्यक्ष बने।

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