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Tokyo Paralympics: 'कभी नहीं चाहता था कि कोई मुझे कमजोर कहे', एक हाथ से दुनिया जीतने उतरेंगे झाझरिया

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सार

झाझरिया ने कहा कि 14 साल की उम्र में जब पहली बार जिला स्तरीय चैंपियनशिप में पहला स्थान हासिल किया तो ऐसा लगा जैसे मैंने ओलंपिक में गोल्ड जीत लिया हो, क्योंकि यह मेरे लिए एक बड़ी उपलब्धि थी। मैं दिल से कभी नहीं चाहता था कि कोई मुझे कमजोर कहे। मैंने खुद को मजबूत साबित किया और सभी को दिखाया कि मैं भी दूसरे एथलीट की तरह सक्षम हूं।

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17 साल पहले शायद ही किसी ने सोचा होगा कि 23-24 साल का यह लड़का एक हाथ से पूरी दुनिया को जीत लेगा। मगर भारतीय भाला फेंक खिलाड़ी देवेंद्र झाझरिया ने यह करके दिखाया। 2004 पैरालंपिक में झाझरिया ने पहली बार गोल्ड जीता। सोना के साथ-साथ इस खिलाड़ी में विश्व रिकॉर्ड भी अपने नाम किया। 62.15 मीटर का थ्रो कर झाझरिया ने एक बाजू से करोड़ों देशवासियों का सिर ऊंचा किया था। इसके बाद दूसरे गोल्ड के लिए झाझरिया को 12 साल का लंबा इंतजार करना पड़ा क्योंकि भाला फेंक को 2008 और 2012 पैरालंपिक से बाहर कर दिया गया। पैरालंपिक से इस इवेंट को हटाए जाने की वजह झाझरिया साल 2013 में खेल को छोड़ने का मन मना लिए थे। मगर पत्नी के कहने के बाद उन्होंने खेल को जारी रखा। नतीजा यह हुआ कि इसके तीन साल बाद यानी 2016 में भाला फेंक को फिर से पैरालंपिक में शामिल कर लिया गया। बस क्या था।
 

झाझरिया ने उसी जोश के साथ इस हिस्सा लिया और दूसरी बार गोल्ड मेडल पर कब्जा किया। इस बार उन्होंने 2004 का रिकॉर्ड तोड़ते हुए नया कीर्तिमान रचा। उन्होंने 63.97 का थ्रो कर दूसरी बार विश्व रिकॉर्ड अपने नाम किया। इस बार भी पूरे देश की निगाहें झाझरिया पर टिकी है। वह गोल्ड मेडल जीत के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। उन्होंने 65.71 मीटर भाला फेंककर टोक्यो पैरालंपिक के लिए क्वॉलिफाइ किया था। भारतीय खिलाड़ी पैरालंपिक में चुनौती पेश करने के लिए टोक्यो पहुंच चुके हैं। इस बार रिकॉर्ड 54 खिलाड़ी नौ खेलों में पदकों के लिए दावा पेश करेंगे। 

हाल ही में हुई वर्चुअल बातचीत में पीएम मोदी ने झाझरिया की जमकर तारीफ की थी। उन्होंने कहा था, ‘राजस्थान के पैरा एथलीट देवेंद्र झाझरिया जी का दमखम देखने लायक है। दो पैरालंपिक में जैवलिन थ्रो में गोल्ड मेडल जीतने के बाद वे टोक्यो में भी स्वर्णिम सफलता हासिल करने के लिए तैयार हैं।’ बातचीत के दौरान पीएम मोदी ने झझारिया से पूछा कि इतने बड़े अंतराल के बावजूद उम्र को झुकाते हुए पदक कैसे जीते। उन्होंने झझारिया की पत्नी और पूर्व कबड्डी खिलाड़ी मंजू से पूछा कि वह अब खेलती है या बंद कर दिया। वहीं बेटी जिया से कहा, टोक्यो खेलों के बाद आप पूरे परिवार के साथ स्टैच्यू ऑफ यूनिटी देखने जाना।’

झाझरिया जब मैं नौ साल के थे तब करंट लगने के उनका हाथ कारण बुरी तरह जख्मी हो गया। उनके लिए बाहर निकलना भी किसी चुनौती से कम नहीं थी। जब उन्होंने अपने स्कूल में भाला फेंकना शुरू किया तो उन्हें लोगों के ताने झेलने पड़े। लोगों को यकीन नहीं था कि वे भाला भी फेंक सकते हैं। लोगों ने यही समझा कि उनके लिए खेलों में कोई जगह नहीं है। मगर उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने फैसला किया कि वो लोगों की इन बातों से खुद को कमजोर नहीं होने देंगे। उन्होंने अपनी जिंदगी से यही सीखा कि जब सामने कोई चुनौती होती है तो आप सफलता प्राप्त करने के करीब होते हैं। इसलिए, उन्होंने इसे एक चुनौती के रूप में लिया।

झाझरिया ने 14 साल की उम्र में जिला स्तरीय चैंपियनशिप में पहला स्थान हासिल किया। वो भी बगैर कोई औपचारिक प्रशिक्षण के। झझरिया को पता था कि वह भाला फेंक में कुछ कर सकते हैं। झाझरिया ने कहा, ‘ऐसा लगा जैसे मैंने ओलंपिक में स्वर्ण जीत लिया हो, क्योंकि यह मेरे लिए एक बड़ी उपलब्धि थी। मैं दिल से कभी नहीं चाहता था कि कोई मुझे कमजोर कहे। मैंने खुद को मजबूत साबित किया और सभी को दिखाया कि मैं भी दूसरे एथलीट की तरह सक्षम हूं।’

बीते वर्ष अक्तूबर माह में उनके पिता को फेफड़ों का कैंसर निकला। उन्होंने काफी जगह हाथ पैर मारे लेकिन सभी जगह जवाब दे दिया गया। वह पिता के साथ थे उनकी सेवा कर रहे थे। एक दिन पिता ने कहा कि तुम्हारे दो छोटे भाई यहां हैं। दोनों उन्हें संभाल लेंगे, लेकिन तुम यहां रुकोगे तो तुम्हारी तैयारियां प्रभावित होंगी। तुम्हें देश के लिए तीसरा पैरालंपिक स्वर्ण जीतना है जाओ गांधीनगर में तैयारियां करो।

विस्तार

17 साल पहले शायद ही किसी ने सोचा होगा कि 23-24 साल का यह लड़का एक हाथ से पूरी दुनिया को जीत लेगा। मगर भारतीय भाला फेंक खिलाड़ी देवेंद्र झाझरिया ने यह करके दिखाया। 2004 पैरालंपिक में झाझरिया ने पहली बार गोल्ड जीता। सोना के साथ-साथ इस खिलाड़ी में विश्व रिकॉर्ड भी अपने नाम किया। 62.15 मीटर का थ्रो कर झाझरिया ने एक बाजू से करोड़ों देशवासियों का सिर ऊंचा किया था। इसके बाद दूसरे गोल्ड के लिए झाझरिया को 12 साल का लंबा इंतजार करना पड़ा क्योंकि भाला फेंक को 2008 और 2012 पैरालंपिक से बाहर कर दिया गया। पैरालंपिक से इस इवेंट को हटाए जाने की वजह झाझरिया साल 2013 में खेल को छोड़ने का मन मना लिए थे। मगर पत्नी के कहने के बाद उन्होंने खेल को जारी रखा। नतीजा यह हुआ कि इसके तीन साल बाद यानी 2016 में भाला फेंक को फिर से पैरालंपिक में शामिल कर लिया गया। बस क्या था।

 


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दूसरी बार गोल्ड जीत रचा कीर्तिमान

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