सूर्यपुत्र और सभी 9 ग्रहों में सबसे मंद गति से चलने वाले शनिदेव को न्याय और कर्म प्रधान माना गया है। सभी ग्रहों में सबसे धीमी चाल से चलने के कारण इनका प्रभाव जातकों पर ज्यादा समय के लिए होता है। शनि की महादशा 19 वर्षों की होती है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या का प्रकोप बहुत ही कष्टकारी माना जाता है। लेकिन दूसरी तरफ शनिदेव शुभ फल भी प्रदान करते हैं। जिन जातकों की कुंडली में शनि शुभ भाव में होते हैं वे उन्हें सभी तरह से शुभ फल प्रदान करते हैं। वहीं दूसरी तरफ अगर कुंडली में शनि अशुभ हैं तो जातकों का कई तरह की परेशानियों से जूझना पड़ता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार हर व्यक्ति के जीवन में एक बार या उससे अधिक शनि की साढ़ेसाती का चरण जरूर आता है। शास्त्रों में शनि की पीड़ा से मुक्ति के लिए कई तरह के उपाय भी बताए गए हैं। शनिदेव की विशेष कृपा पाने के लिए शनिवार का दिन बहुत खास होता है।