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75th Independence Day: बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने की थी ‘वंदेमातरम’ की रचना, जगा दी आजादी के वक्त लोगों में देशभक्ति
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: Jeet Kumar
Updated Sun, 15 Aug 2021 06:07 AM IST
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हमार राष्ट्रीयगीत वंदेमातरम है और इस की रचना बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने की थी। 26 जून 1838 को पैदा हुए बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने देशवासियो को अंगेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन के लिए अपनी रचनाओं से प्रेरित किया। इनकी मृत्यु 8 अप्रैल, 1894 को हुई।
ऐसे हुई राष्ट्रीय गीत की रचना
भारत में उस वक्त ब्रिटिश शासन था, उनका शासन होने कारण हर समारोह में ब्रिटेन का एक गीत था ‘गॉड! सेव द क्वीन’ जो गाया जाता था। लेकिन बंकिमचंद्र ने को यह नहीं भाया और जब उन्होंने वंदे मातरम की रचना की। इसके बाद इस गीत को भारत के हर समारोह में अनिवार्य कर दिया गया।
बंकिमचंद्र तब सरकारी नौकरी में थे। उसके बाद उन्होंने साल 1876 में एक गीत की रचना की और उसका शीर्षक दिया ‘वन्दे मातरम’। उन्होंने अपनी किताब आनंदमठ में भी संस्कृत में इस गीत को शामिल किया।
इस गीत को पहली बार 1905 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वाराणसी अधिवेशन में गाया गया था। थोड़े ही समय में यह गीत काफी लोकप्रिय हो गया और अंग्रेज शासन के खिलाफ क्रांति का प्रतीक बन गया।
जिन्ना ने किया था विरोध
जब हर अधिवेशन में यह गीत गाया जाने लगा 1938 में मोहम्मद अली जिन्ना ने इस गीत का विरोध किया। इसके साथ ही मुसलमानों ने वंदे मातरम को राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार करने से इनकार कर दिया। मुस्लिम लीग के एक नेता ने तो यह कह दिया था कि राष्ट्रवाद की आड़ में, भारत में हिंदू राष्ट्रवाद का प्रचार किया जा रहा है।
मुस्लिम लीग के नेताओं द्वारा गीत का विरोध कविता के बाद के छंद में देवी दुर्गा के संदर्भों पर आधारित था, विशेष रूप से जहां यह कहता है कि “तू दुर्गा, महिला और रानी”। बंकिम चंद्र ने अपने देश की तुलना भारत में सम्मानित और पूज्य नारीत्व के विभिन्न रूपों से की। जिसे लेकर मुस्लिम लीग ने कड़ा विरोध किया।
विस्तार
हमार राष्ट्रीयगीत वंदेमातरम है और इस की रचना बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने की थी। 26 जून 1838 को पैदा हुए बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने देशवासियो को अंगेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन के लिए अपनी रचनाओं से प्रेरित किया। इनकी मृत्यु 8 अप्रैल, 1894 को हुई।
ऐसे हुई राष्ट्रीय गीत की रचना
भारत में उस वक्त ब्रिटिश शासन था, उनका शासन होने कारण हर समारोह में ब्रिटेन का एक गीत था ‘गॉड! सेव द क्वीन’ जो गाया जाता था। लेकिन बंकिमचंद्र ने को यह नहीं भाया और जब उन्होंने वंदे मातरम की रचना की। इसके बाद इस गीत को भारत के हर समारोह में अनिवार्य कर दिया गया।
बंकिमचंद्र तब सरकारी नौकरी में थे। उसके बाद उन्होंने साल 1876 में एक गीत की रचना की और उसका शीर्षक दिया ‘वन्दे मातरम’। उन्होंने अपनी किताब आनंदमठ में भी संस्कृत में इस गीत को शामिल किया।
इस गीत को पहली बार 1905 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वाराणसी अधिवेशन में गाया गया था। थोड़े ही समय में यह गीत काफी लोकप्रिय हो गया और अंग्रेज शासन के खिलाफ क्रांति का प्रतीक बन गया।
जिन्ना ने किया था विरोध
जब हर अधिवेशन में यह गीत गाया जाने लगा 1938 में मोहम्मद अली जिन्ना ने इस गीत का विरोध किया। इसके साथ ही मुसलमानों ने वंदे मातरम को राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार करने से इनकार कर दिया। मुस्लिम लीग के एक नेता ने तो यह कह दिया था कि राष्ट्रवाद की आड़ में, भारत में हिंदू राष्ट्रवाद का प्रचार किया जा रहा है।
मुस्लिम लीग के नेताओं द्वारा गीत का विरोध कविता के बाद के छंद में देवी दुर्गा के संदर्भों पर आधारित था, विशेष रूप से जहां यह कहता है कि “तू दुर्गा, महिला और रानी”। बंकिम चंद्र ने अपने देश की तुलना भारत में सम्मानित और पूज्य नारीत्व के विभिन्न रूपों से की। जिसे लेकर मुस्लिम लीग ने कड़ा विरोध किया।