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सुप्रीम कोर्ट: पेड़ काटने के आदेश में गोपनीयता बरतना सुशासन के खिलाफ 

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अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली
Published by: देव कश्यप
Updated Sun, 21 Nov 2021 02:37 AM IST

सार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गोपनीयता का पर्दा पर्यावरण मंजूरी के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि यह कानूनी उपायों का उपयोग करके नागरिकों से चुनौती देने का अधिकार छीन लेता है।

सर्वोच्च न्यायालय
– फोटो : पीटीआई

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पेड़ों की कटाई के लिए वैधानिक मंजूरी में गोपनीयता का ‘आवरण’ डालने से जवाबदेही की कमी आएगी। ऐसा पर्यावरण नियमों के विपरीत है, जबकि पारदर्शिता, सुशासन के लिए जरूरी है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने कहा, पेड़ों को काटने की अनुमति सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध होनी चाहिए। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पीड़ित व्यक्तियों को इसे चुनौती देने का अधिकार है।

पीठ ने यह भी कहा कि गोपनीयता का पर्दा पर्यावरण मंजूरी के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि यह कानूनी उपायों का उपयोग करके नागरिकों से चुनौती देने का अधिकार छीन लेता है। पीठ ने कहा है कि पारदर्शिता की कमी से जवाबदेही में कमी आती है।

इस टिप्पणी के साथ शीर्ष अदालत ने उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-72ए की सड़क के हिस्सों के लिए इस साल 27 अगस्त को वन अधिकारी द्वारा पेड़ों को काटने की दी गई अनुमति पर 26 नवंबर तक के लिए रोक लगा दी है। साथ ही शीर्ष अदालत ने पेड़ों की कटाई पर रोक की मांग करने वाले एनजीओ ‘सिटीजन्स फॉर ग्रीन दून’ को अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाने को कहा, जिससे एनजीटी एक तर्कपूर्ण आदेश पारित कर सके।

जिस अधिकारी ने दी अनुमति उसी ने आरटीआई में झूठी सूचना दी
याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत के सामने दलील दी थी कि केंद्र सरकार के पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा पेड़ों की कटाई की अनुमति की सूचना सार्वजनिक नहीं की गई थी। कोर्ट को यह भी बताया गया कि देहरादून के जिला वन अधिकारी ने 11 अक्तूबर 2021 को आरटीआई के तहत मांगी जानकारी में गलत सूचना दी कि पेड़ों की कटाई की कोई अनुमति नहीं दी गई है जबकि उन्हीं ने 27 अगस्त को इसके लिए आदेश पारित किया था।

एनजीटी ने याचिका खारिज करने में गलती की
अदालत ने माना कि एनजीटी ने स्टेज- टू की मंजूरी को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करने में गलती की थी क्योंकि ट्रिब्यूनल के समक्ष मामला लंबित होने के समय पेड़ों की कटाई की अनुमति देने का आदेश पारित हो चुका था। इस जानकारी को न तो रिकॉर्ड पर रखा गया था और न ही इसे सार्वजनिक डोमेन में रखा गया था।

विस्तार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पेड़ों की कटाई के लिए वैधानिक मंजूरी में गोपनीयता का ‘आवरण’ डालने से जवाबदेही की कमी आएगी। ऐसा पर्यावरण नियमों के विपरीत है, जबकि पारदर्शिता, सुशासन के लिए जरूरी है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने कहा, पेड़ों को काटने की अनुमति सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध होनी चाहिए। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पीड़ित व्यक्तियों को इसे चुनौती देने का अधिकार है।

पीठ ने यह भी कहा कि गोपनीयता का पर्दा पर्यावरण मंजूरी के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि यह कानूनी उपायों का उपयोग करके नागरिकों से चुनौती देने का अधिकार छीन लेता है। पीठ ने कहा है कि पारदर्शिता की कमी से जवाबदेही में कमी आती है।

इस टिप्पणी के साथ शीर्ष अदालत ने उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-72ए की सड़क के हिस्सों के लिए इस साल 27 अगस्त को वन अधिकारी द्वारा पेड़ों को काटने की दी गई अनुमति पर 26 नवंबर तक के लिए रोक लगा दी है। साथ ही शीर्ष अदालत ने पेड़ों की कटाई पर रोक की मांग करने वाले एनजीओ ‘सिटीजन्स फॉर ग्रीन दून’ को अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाने को कहा, जिससे एनजीटी एक तर्कपूर्ण आदेश पारित कर सके।

जिस अधिकारी ने दी अनुमति उसी ने आरटीआई में झूठी सूचना दी

याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत के सामने दलील दी थी कि केंद्र सरकार के पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा पेड़ों की कटाई की अनुमति की सूचना सार्वजनिक नहीं की गई थी। कोर्ट को यह भी बताया गया कि देहरादून के जिला वन अधिकारी ने 11 अक्तूबर 2021 को आरटीआई के तहत मांगी जानकारी में गलत सूचना दी कि पेड़ों की कटाई की कोई अनुमति नहीं दी गई है जबकि उन्हीं ने 27 अगस्त को इसके लिए आदेश पारित किया था।

एनजीटी ने याचिका खारिज करने में गलती की

अदालत ने माना कि एनजीटी ने स्टेज- टू की मंजूरी को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करने में गलती की थी क्योंकि ट्रिब्यूनल के समक्ष मामला लंबित होने के समय पेड़ों की कटाई की अनुमति देने का आदेश पारित हो चुका था। इस जानकारी को न तो रिकॉर्ड पर रखा गया था और न ही इसे सार्वजनिक डोमेन में रखा गया था।

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