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सुप्रीम कोर्ट: दुर्घटना में घायल के लिए उचित मुआवजा तय करें अदालतें और ट्रिब्यूनल
अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली।
Published by: Jeet Kumar
Updated Thu, 28 Oct 2021 02:21 AM IST
सार
शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालतों और न्यायाधिकरणों का प्रयास, दावेदार के दुख को कम करने और उसकी वास्तविक जरूरतों को पहचानने का होना चाहिए।
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शीर्ष अदालत ने दुर्घटना में घायल एक बाइक सवार को दी जाने वाली मुवावजा राशि को बढ़ाते हुए ये बात कही। यह देखते हुए कि घायल बाइक सवार को 191 दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ा था, शीर्ष अदालत ने केरल हाईकोर्ट द्वारा दिए गए 9.38 लाख रुपये के मुआवजे को बढ़ाकर 27.67 लाख रुपये कर दिया।
जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ ने कहा कि मोटर वाहन अधिनियम, सामाजिक कल्याण कानून की प्रकृति का है और इसके प्रावधान यह स्पष्ट करते हैं कि मुआवजा उचित तरीके से निर्धारित किया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा है कि न्यायाधिकरणों और न्यायालयों को इस तथ्य के प्रति सचेत रहना चाहिए कि व्यक्ति की स्थायी विकलांगता न केवल उसकी क्षमताओं और उसकी शारीरिक सुविधाओं को प्रभावित करती है बल्कि कई अन्य चीजों पर भी असर डालती है। वास्तविकता यह है कि एक स्वस्थ व्यक्ति अशक्त हो जाता है और वह सामान्य जीवन जीने में असमर्थ हो जाता है। इससे व्यक्ति आत्म-गौरव कम होता है।
शीर्ष अदालत केरल निवासी जितेंद्रन द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी जिसमें केरल हाईकोर्ट द्वारा तय की गई मुआवजे की राशि को चुनौती दी गई थी। 13 अप्रैल, 2001 को एक कार ने बाइक को टक्कर मार दी थी। इस दुर्घटना में बाइक के पीछे बैठे जितेंद्रन 69 प्रतिशत विकलांगता का शिकार हो गए थे।
विस्तार
शीर्ष अदालत ने दुर्घटना में घायल एक बाइक सवार को दी जाने वाली मुवावजा राशि को बढ़ाते हुए ये बात कही। यह देखते हुए कि घायल बाइक सवार को 191 दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ा था, शीर्ष अदालत ने केरल हाईकोर्ट द्वारा दिए गए 9.38 लाख रुपये के मुआवजे को बढ़ाकर 27.67 लाख रुपये कर दिया।
जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ ने कहा कि मोटर वाहन अधिनियम, सामाजिक कल्याण कानून की प्रकृति का है और इसके प्रावधान यह स्पष्ट करते हैं कि मुआवजा उचित तरीके से निर्धारित किया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा है कि न्यायाधिकरणों और न्यायालयों को इस तथ्य के प्रति सचेत रहना चाहिए कि व्यक्ति की स्थायी विकलांगता न केवल उसकी क्षमताओं और उसकी शारीरिक सुविधाओं को प्रभावित करती है बल्कि कई अन्य चीजों पर भी असर डालती है। वास्तविकता यह है कि एक स्वस्थ व्यक्ति अशक्त हो जाता है और वह सामान्य जीवन जीने में असमर्थ हो जाता है। इससे व्यक्ति आत्म-गौरव कम होता है।
शीर्ष अदालत केरल निवासी जितेंद्रन द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी जिसमें केरल हाईकोर्ट द्वारा तय की गई मुआवजे की राशि को चुनौती दी गई थी। 13 अप्रैल, 2001 को एक कार ने बाइक को टक्कर मार दी थी। इस दुर्घटना में बाइक के पीछे बैठे जितेंद्रन 69 प्रतिशत विकलांगता का शिकार हो गए थे।