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म्यांमारः सैनिक तख्ता पलट के बाद अगले साल क्या मोड़ लेगा सैनिक शासन और प्रतिरोध संघर्ष के बीच का गतिरोध?
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, यंगून
Published by: Kuldeep Singh
Updated Tue, 28 Dec 2021 12:18 AM IST
सार
म्यांमार में 11 महीनों तक गतिरोध की स्थिति रहने के बाद अब पर्यवेक्षकों की निगाहें 2022 पर हैं। नए वर्ष के आकलन में विदेशी मीडिया ने कहा है कि सैनिक तख्ता पलट के बाद से देश में वास्तविक संघर्ष और ‘मनोवैज्ञानिक युद्ध’ की बनी स्थिति बनी हुई है। अब जबकि 2021 अपने आखिरी दिनों में है, यह अनुमान लगाना मुश्किल बना हुआ है कि अगले वर्ष घटनाएं क्या मोड़ लेंगी।
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पीडीएफ अब तकरीबन 50 गुटों के साझा मोर्चे के रूप में सक्रिय
इस साल के अंत तक म्यांमार में संघर्ष के दो ध्रुवों- सैनिक शासन और पीपुल्स डिफेंस फोर्सेज (पीडीएफ) के बीच सिमट गया। सैनिक शासन विरोधी आंदोलन के क्रूर दमन के बीच इस साल अप्रैल में पीडीएफ का गठन हुआ था। उसके बाद से इस संगठन की ताकत बढ़ती गई है। बताया जाता है कि 150 से 200 गुट पीडीएफ में शामिल हैं, जो देश के अलग-अलग हिस्सों में सक्रिय हैं। लेकिन वेबसाइट एशिया टाइम्स की एक रिपोर्ट में बताया गया कि पीडीएफ का गठन होने के बाद इसमें शामिल कई गुटों ने आपस में विलय कर लिया। इसलिए अब पीडीएफ तकरीबन 50 गुटों के साझा मोर्चे के रूप में सक्रिय है।
मीडिया रिपोर्टों के मुंताबिक पीडीएफ के प्रतिरोध अभियान ने हाल में देश का ध्यान खींचे रखा है। पीडीएफ के हथियारबंद समूहों ने सेना की तरफ से तैनात कई अधिकारियों की हत्याएं की हैं। उन्होंने कई सैनिक अड्डों और पुलिस थानों पर हमले किए हैं। बताया जाता है कि देश के कुछ हिस्सों में उन्होंने सरकारी तंत्र को अस्त-व्यस्त कर रखा है। पीडीएफ ने कई जगहों पर रेल और सड़क पुल और मोबाइल फोन के टावर उड़ा दिए हैं।
बीते नवंबर में इन्हीं इलाकों में सैनिक शासकों ने अपना ‘उग्रवाद विरोधी’ विशेष अभियान शुरू किया। ‘अलौंग मिन ताया’ नाम के इस अभियान के दौरान अंधाधुंध छापे मारे गए हैं और कई जगहों पर हवाई बमबारी की गई है। लेकिन जानकारों का कहना है कि ये सख्त कार्रवाई भी विद्रोहियों का मनोबल तोड़ने में नाकाम रही है। वैसे जानकारों का यह भी कहना है कि पीडीएफ के सामने इस समय मुश्किल चुनौतियां हैं।
पीडीएफ की पहली बड़ी मुश्किल यह है कि उसके पास आधुनिक हथियारों की कमी है। पीडीएफ मोटे तौर पर आम राइफलों और ऑटोमैटिक हथियारों से हमले करता रहा है। हथियार जुटाने में उसे म्यांमार के सीमाई इलाकों में बसे नस्लीय अल्पसंख्यक समुदायों से मदद मिलती रही है। पीडीएफ हिट एंड रन तरीके से हमले करता रहा है। लेकिन जो हथियार उसके पास हैं, उनसे म्यांमार की सेना का मुकाबला करना कठिन है, क्योंकि सेना के पास अत्याधुनिक हथियार है।
इसीलिए विश्लेषकों का कहना है कि सैनिक शासन विरोधी संघर्ष अगले साल कहां पहुंचेगा, यह काफी कुछ इस पर निर्भर करेगा कि खुद को म्यांमार की वैकल्पिक सरकार के तौर पर पेश करने वाले एनयूजी (नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट) और पीडीएफ में कितना तालमेल बन पाता है। अगर ये संबंध कमजोर रहा, तो पीडीएफ छिटपुट हमले करने तक सीमित रहेगा। उस हाल में सैनिक शासकों उसका आसानी से दमन करने की स्थिति में होंगे।
विस्तार
पीडीएफ अब तकरीबन 50 गुटों के साझा मोर्चे के रूप में सक्रिय
इस साल के अंत तक म्यांमार में संघर्ष के दो ध्रुवों- सैनिक शासन और पीपुल्स डिफेंस फोर्सेज (पीडीएफ) के बीच सिमट गया। सैनिक शासन विरोधी आंदोलन के क्रूर दमन के बीच इस साल अप्रैल में पीडीएफ का गठन हुआ था। उसके बाद से इस संगठन की ताकत बढ़ती गई है। बताया जाता है कि 150 से 200 गुट पीडीएफ में शामिल हैं, जो देश के अलग-अलग हिस्सों में सक्रिय हैं। लेकिन वेबसाइट एशिया टाइम्स की एक रिपोर्ट में बताया गया कि पीडीएफ का गठन होने के बाद इसमें शामिल कई गुटों ने आपस में विलय कर लिया। इसलिए अब पीडीएफ तकरीबन 50 गुटों के साझा मोर्चे के रूप में सक्रिय है।
मीडिया रिपोर्टों के मुंताबिक पीडीएफ के प्रतिरोध अभियान ने हाल में देश का ध्यान खींचे रखा है। पीडीएफ के हथियारबंद समूहों ने सेना की तरफ से तैनात कई अधिकारियों की हत्याएं की हैं। उन्होंने कई सैनिक अड्डों और पुलिस थानों पर हमले किए हैं। बताया जाता है कि देश के कुछ हिस्सों में उन्होंने सरकारी तंत्र को अस्त-व्यस्त कर रखा है। पीडीएफ ने कई जगहों पर रेल और सड़क पुल और मोबाइल फोन के टावर उड़ा दिए हैं।