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तमिलनाडु में ऋण माफी : सुप्रीम कोर्ट ने कहा- योजना चुनावी वादा थी, सिर्फ इसलिए उसे 'संदिग्ध' नहीं कह सकते

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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को वर्ष 2016 में तमिलनाडु सरकार द्वारा छोटे और सीमांत किसानों को जारी किए गए ऋणों को माफ करने की योजना को बरकरार रखा है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि किसी योजना को संवैधानिक रूप से केवल इसलिए संदिग्ध नहीं माना जा सकता क्योंकि वह एक चुनावी वादे पर आधारित थी। 

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि आर्थिक और सामाजिक न्याय को सुरक्षित करने के लिए एक वर्ग के तौर पर किसानों के कल्याण को बढ़ावा देने का उद्देश्य संविधान के अनुच्छेद-38 द्वारा अच्छी तरह से मान्यता प्राप्त है। 

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘जोत की सीमा के आधार पर वर्गीकरण मनमाना नहीं है क्योंकि छोटे और सीमांत किसानों की अंतर्निहित कमजोर स्थिति, जलवायु परिवर्तन या अन्य बाहरी ताकतों का प्रभाव असमान है।

ये टिप्पणी करते हुए शीर्ष अदालत ने मद्रास हाईकोर्ट के चार अप्रैल 2017 के उस फैसले को दरकिनार  कर दिया जिसमें केवल छोटे और सीमांत किसानों को ऋण माफी देने को मनमाना करार दिया गया था। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को सभी किसानों को लाभ देने का निर्देश दिया था चाहे जोत की सीमा कुछ भी हो। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार के कानून या योजना की परीक्षा बहुसंख्यक नैतिकता के आधार पर नहीं बल्कि संवैधानिक नैतिकता पर ही की जा सकती है। पीठ ने यह भी कहा कि यह योजना तमिलनाडु की तत्कालीन सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा किए गए चुनावी वादे के अनुसरण में लाई गई थी। पीठ ने कहा, ‘यह स्थापित कानून है कि किसी योजना को केवल इसलिए संवैधानिक रूप से संदिग्ध नहीं माना जा सकता क्योंकि वह चुनावी वादे पर आधारित थी।’

शीर्ष अदालत ने पांच एकड़ से कम भूमि वाले छोटे और सीमांत किसानों व समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को अन्य किसानों के मुकाबले होनी वाली अलग परेशानी की ओर भी इशारा किया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘छोटे और सीमांत किसान समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के हैं। इसलिए ऋण माफी योजना प्रभावी रूप से ग्रामीण आबादी के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को लक्षित करती है।’

पीठ ने यह भी कहा कि किसानों के लिए कृषि ऋण माफी प्रदान करने का उद्देश्य संकटग्रस्त किसानों का उत्थान करना है क्योंकि वे अनिश्चित मौसम, कम उपज और बाजार की स्थितियों के कारण कीमतों में गिरावट का खामियाजा भुगत रहे हैं।

अदालत ने पाया कि 16,94,145 छोटे और सीमांत किसानों ने कृषि ऋण का लाभ उठाया है जबकि अन्य श्रेणी के 3,01,926 किसानों ने इसका लाभ उठाया। इससे पता चलता है कि छोटे और सीमांत किसानों के पास बाकी किसानों की तुलना में पूंजी की बेहद कमी है।

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