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केरल हाईकोर्ट: आपराधिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति की किडनी, लिवर या हृदय भी अपराधी नहीं होते

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सार

जस्टिस पीवी कुनिकृष्णन ने कहा, आपराधिक पृष्ठभूमि न होना अंगदान के लिए बने 1994 के कानून व 2014 के नियमों के अनुसार कोई शर्त नहीं है। ऐसा रहा तो समिति कल हत्या, चोरी से लेकर मामूली अपराध करने वालों को अंगदान से रोक देगी। 

केरल उच्च न्यायालय
– फोटो : पीटीआई

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आपराधिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति की किडनी, लिवर या हृदय भी अपराधी नहीं होते। उसके अंगों और गैर-आपराधिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति के अंगों में कोई फर्क नहीं होता। हम सभी में मानव रक्त ही बहता है। 
केरल हाईकोर्ट ने यह बात एर्नाकुलम में अंगदान मामलों के लिए बनी जिला प्राधिकार समिति द्वारा एक व्यक्ति की किडनी दान करने से रोकने का निर्णय रद्द करते हुए कही। 

समिति ने व्यक्ति को आपराधिक पृष्ठभूमि का करार देकर अंगदान के लिए अयोग्य करार दिया था। केरल के एक व्यक्ति ने हाईकोर्ट में इसे लेकर याचिका दायर की थी। उसकी दोनों किडनियां खराब हैं। उसका पुराना ड्राइवर किडनी देने को राजी है, पर समिति ने अर्जी चार माह लटकाए रखने के बाद ड्राइवर को आपराधिक पृष्ठभूमि का बताकर खारिज कर दिया। 

अंग पा रहे व्यक्ति को अंगदानकर्ता से अलग धर्म, जाति का बताकर भी अंगदान अर्जी खारिज कर सकती है। शायद समिति को लगता है कि किसी व्यक्ति का अंग दूसरे व्यक्ति को लगेगा तो उसमें पहले व्यक्ति जैसा व्यवहार आ जाएंगे। यह कैसा तर्क है? सामान्य समझदारी रखने वाले व्यक्ति ऐसा सोच भी कैसे सकते हैं? एक आदमी मृत्यु शैया पर पड़ा है, उस समय में व्यावहारिकता देखनी चाहिए। 

शरीर नश्वर पर अंगदान देता है जीवन 
हाईकोर्ट ने कहा, शरीर दफन किया जाता है तो सड़ता है, जलाया जाता है तो राख रह जाती है। जब अंग दान किए जाते हैं तो वे कई लोगों को खुशियां और जीवन देते हैं। प्राधिकार समिति के निर्णय ऐसे होने चाहिए कि लोग अंगदान के लिए प्रेरित हों। 

आपात मामलों पर जल्द लें निर्णय 
समिति द्वारा चार माह बाद याची की अर्जी खारिज करने पर हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई और कहा, भविष्य में ऐसा न हो। केरल के मुख्य सचिव को आदेश दिया कि वे सभी समितियों को नियमित बैठकें करने व अंगदान अर्जियों पर सात दिन में निर्णय लेने के निर्देश दें। आपात मामले हों तो तत्काल विचार करें। अगर निर्णय लेने में सात दिन से ज्यादा लगें समिति अपने निर्णय में इस देरी की वजह बताएं। 

विस्तार

आपराधिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति की किडनी, लिवर या हृदय भी अपराधी नहीं होते। उसके अंगों और गैर-आपराधिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति के अंगों में कोई फर्क नहीं होता। हम सभी में मानव रक्त ही बहता है। 

केरल हाईकोर्ट ने यह बात एर्नाकुलम में अंगदान मामलों के लिए बनी जिला प्राधिकार समिति द्वारा एक व्यक्ति की किडनी दान करने से रोकने का निर्णय रद्द करते हुए कही। 

समिति ने व्यक्ति को आपराधिक पृष्ठभूमि का करार देकर अंगदान के लिए अयोग्य करार दिया था। केरल के एक व्यक्ति ने हाईकोर्ट में इसे लेकर याचिका दायर की थी। उसकी दोनों किडनियां खराब हैं। उसका पुराना ड्राइवर किडनी देने को राजी है, पर समिति ने अर्जी चार माह लटकाए रखने के बाद ड्राइवर को आपराधिक पृष्ठभूमि का बताकर खारिज कर दिया। 

अंग पा रहे व्यक्ति को अंगदानकर्ता से अलग धर्म, जाति का बताकर भी अंगदान अर्जी खारिज कर सकती है। शायद समिति को लगता है कि किसी व्यक्ति का अंग दूसरे व्यक्ति को लगेगा तो उसमें पहले व्यक्ति जैसा व्यवहार आ जाएंगे। यह कैसा तर्क है? सामान्य समझदारी रखने वाले व्यक्ति ऐसा सोच भी कैसे सकते हैं? एक आदमी मृत्यु शैया पर पड़ा है, उस समय में व्यावहारिकता देखनी चाहिए। 

शरीर नश्वर पर अंगदान देता है जीवन 

हाईकोर्ट ने कहा, शरीर दफन किया जाता है तो सड़ता है, जलाया जाता है तो राख रह जाती है। जब अंग दान किए जाते हैं तो वे कई लोगों को खुशियां और जीवन देते हैं। प्राधिकार समिति के निर्णय ऐसे होने चाहिए कि लोग अंगदान के लिए प्रेरित हों। 

आपात मामलों पर जल्द लें निर्णय 

समिति द्वारा चार माह बाद याची की अर्जी खारिज करने पर हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई और कहा, भविष्य में ऐसा न हो। केरल के मुख्य सचिव को आदेश दिया कि वे सभी समितियों को नियमित बैठकें करने व अंगदान अर्जियों पर सात दिन में निर्णय लेने के निर्देश दें। आपात मामले हों तो तत्काल विचार करें। अगर निर्णय लेने में सात दिन से ज्यादा लगें समिति अपने निर्णय में इस देरी की वजह बताएं। 

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