टेक डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Mon, 02 Nov 2020 06:49 PM IST
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शिकायत दर्ज होने में लग जाते हैं महीनों
22 सितंबर को नोएडा सेक्टर-108 के रहने वाले अनुराग के मोबाइल पर 10,000 रुपये और 1,000 रुपये के दो ट्रांजेक्शन के मैसेज आते हैं, जबकि अनुराग ने कोई ट्रांजेक्शन नहीं किया है। इसके बाद वे स्थानीय पुलिस स्टेशन में जाते हैं। स्थानीय पुलिस अनुराग को साइबर सेल में जाने के लिए कहती है। उसके बाद उनकी शिकायत दर्ज की जाती है, जबकि स्थानीय पुलिस साइबर की रिपोर्ट खुद दर्ज कर सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। आखिरकार एक महीने बाद 21 अक्तूबर को अनुराग की रिपोर्ट दर्ज की गई।
यह हालत सिर्फ अनुराग की नहीं है, बल्कि पुलिस के इस रवैये की वजह से साइबर क्राइम के अधिकतर मामले महीनों बाद दर्ज होते हैं। नोएडा की ही एक महिला को साइबर क्राइम की रिपोर्ट लिखवाने में 15 दिनों का वक्त लग गया था। महिला की फोटो को किसी ने एडिट करके सोशल मीडिया पर फेक आईडी से अपलोड कर दिया था और फिर व्हाट्सएप मैसेज भेजकर पैसे मांग रहा था।
बढ़ते साइबर क्राइम के बाद सेल में पुलिसकर्मियों की कमी
साइबर सेल के पुलिस उप आयुक्त (डीसीपी) नीतिन तिवारी के मुताबिक कोई भी पुलिस स्टेशन साइबर क्राइम या किसी अन्य मामले में एफआईआर दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकता है। उन्होंने बताया कि केवल नोएडा साइबर सेल में रोज 400-500 मामले दर्ज होते हैं। ऐसे में इनकी जांच करने और फाइल तैयार करने में काफी वक्त लग जाता है, क्योंकि सेक्टर-108 स्थित साइबर पुलिस स्टेशन में महज 37 पुलिसकर्मी ही हैं। नोएडा में रिपोर्ट दर्ज होने के बाद फाइल को लखनऊ भेजा जाता है। उसके बाद फाइनल रिपोर्ट तैयार होती है।
