सार
जब बृहस्पति हंस महापुरुष योग बनाते हैं तो अति शक्तिशाली परिणाम देते हैं। इस योग वाले व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा बहुत ऊंची हो जाती है। व्यक्ति शिक्षा सम्बन्धी कार्य या प्रवचन करता है। लोग उससे सलाह लेने आते हैं।
हंस महापुरुष योग (प्रतीकात्मक तस्वीर)
जन्म पत्रिका के शक्तिशाली योगों में से एक है हंस महापुरुष योग। यह योग बृहस्पति ग्रह के कारण बनता है। जन्म पत्रिका में कुल 12 भाव होते हैं। उनमें से 4 भाव केन्द्र स्थान कहलाते हैं और 3 भाव त्रिकोण कहलाते हैं। लग्न स्थान, केन्द्र और त्रिकोण दोनों का दायित्व निभाता है।
कैसे होता है हंस महापुरुष योग का निर्माण
बृहस्पति की 2 राशियां हैं, एक धनु है और एक मीन। धनु को 9 के अंक से व्यक्त करते हैं और मीन को 12 से। कर्क राशि जिसे 4 के अंक से व्यक्त किया जाता है बृहस्पति की उच्च राशि कहलाती है। इन तीनों ही राशियों में जब बृहस्पति होते हैं तो शक्तिशाली परिणाम देते हैं, परन्तु इन तीनों में से भी जब बृहस्पति कर्क राशि यानि 4 के अंक पर होते हैं तो सर्वाधिक शुभ फल देते हैं। जब बृहस्पति कुंडली के केंद्र भावों में अपनी उच्च राशि, मूल त्रिकोण राशि अथवा स्वराशि में से किसी भी राशि में स्थित होता है तो इस योग का निर्माण होता है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि यदि किसी कुंडली में देव गुरु बृहस्पति प्रथम, चतुर्थ, सप्तम या दशम भाव में अर्थात् केंद्र भावों में अपनी उच्च अवस्था वाली राशि अर्थात् कर्क राशि में स्थित हों अथवा अपनी मूल त्रिकोण राशि धनु में विद्यमान हों या फिर अपनी स्वराशि मीन राशि में स्थित हों तो बृहस्पति द्वारा हंस महापुरुष योग का निर्माण होगा।
हंस महापुरुष योग देता है शक्तिशाली परिणाम
जब बृहस्पति हंस महापुरुष योग बनाते हैं तो अति शक्तिशाली परिणाम देते हैं। इस योग वाले व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा बहुत ऊंची हो जाती है। व्यक्ति शिक्षा सम्बन्धी कार्य या प्रवचन करता है। लोग उससे सलाह लेने आते हैं। शास्त्रों के ज्ञाता होते हैं। गुणी और आत्म विश्वास से भरपूर होते हैं। धर्माचरण करते हुए सब के पूज्य हो जाते हैं और इस योग का श्रेष्ठ फल 50 से 60 वर्ष के बीच देखने में आता है।
इस महायोग वाले व्यक्तियों को आसानी से फुसलाया नहीं जा सकता। इनका ज्ञान का खजाना बढ़ता ही चला जाता है। और यह व्यक्ति एवं समाज को सही मार्ग पर ले जाता है। इस योग में यदि विकृति आ जाए तो व्यक्ति अहंकारी हो जाता है। कब स्वाभिमान अहंकार में बदल गया पता ही नहीं चलता। जन्म पत्रिका के इस योग पर अन्य ग्रहों का कोई कुप्रभाव नहीं हो तो व्यक्ति दिव्य शक्तियों से सम्पन्न होता है और जगत कल्याण की सोचता है।
हंस महापुरुष योग के जातक के रुचिकर क्षेत्र
हंस महापुरुष योग वाले व्यक्ति शिक्षण-प्रशिक्षण, लेखन-मुद्रण, वित्त, बैंकिंग, सामाजिक नेतृत्व, धर्म, ज्योतिष व अन्य वैदिक विद्याएं जैसे कार्यों में रुचि लेते हैं और अपने विषय में प्रसिद्ध हो जाते हैं। यदि यह योग अपने उत्तम स्थिति में हों, जो कि तभी सम्भव हो सकता जब शुक्र, चन्द्र और बुध जैसे ग्रह बृहस्पति पर दृष्टि कर रहे हों या बृहस्पति के साथ एक ही राशि में स्थित हों, तो वह व्यक्ति असाधारण गुणों से सम्पन्न होता है। यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि केवल कुंडली में इस योग का निर्मित हो जाना ही सही फलों को देने में सक्षम नहीं होता बल्कि यह देखना भी आवश्यक होता है कि कुंडली में बृहस्पति की स्थिति क्या है, क्या वह कारक है अथवा अकारक, क्या वह शत्रु स्थिति में है अथवा क्या इस योग के निर्माण के बावजूद वह पीड़ित अवस्था में है या पाप ग्रहों से उसका संबंध है क्योंकि यदि ऐसी स्थिति बनती है तो इस ग्रह के फलों में कमी आ जाती है।
नीच राशि में होने से नहीं मिलता शुभ फल
इसके अतिरिक्त, यदि नवांश कुंडली में देव गुरु बृहस्पति अपनी नीच राशि में अथवा शत्रु राशि में अथवा पीड़ित अवस्था में होते हैं तो भी जन्म कुंडली में इस राज योग के बनने के बावजूद इसके संपूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाते बल्कि उनमें अल्पता या शून्यता आने लग जाती है। यही वजह है कि अक्सर लोग यह कहते सुने जाते हैं कि मेरी कुंडली में तो इतने राजयोग होने के बावजूद मुझे उनका फल नहीं मिल रहा और कई बार तो स्थिति ऐसी भी होती है कि उनके जीवन में इस ग्रह की महादशा आती ही नहीं है या फिर बहुत विलंब से आती है। इस वजह से भी उन्हें इसके संपूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाते। इसीलिए इन सभी बिंदुओं पर विचार करने के बाद ही इस राज योग के फलों के बारे में कथन करना चाहिए।
विस्तार
जन्म पत्रिका के शक्तिशाली योगों में से एक है हंस महापुरुष योग। यह योग बृहस्पति ग्रह के कारण बनता है। जन्म पत्रिका में कुल 12 भाव होते हैं। उनमें से 4 भाव केन्द्र स्थान कहलाते हैं और 3 भाव त्रिकोण कहलाते हैं। लग्न स्थान, केन्द्र और त्रिकोण दोनों का दायित्व निभाता है।
कैसे होता है हंस महापुरुष योग का निर्माण
बृहस्पति की 2 राशियां हैं, एक धनु है और एक मीन। धनु को 9 के अंक से व्यक्त करते हैं और मीन को 12 से। कर्क राशि जिसे 4 के अंक से व्यक्त किया जाता है बृहस्पति की उच्च राशि कहलाती है। इन तीनों ही राशियों में जब बृहस्पति होते हैं तो शक्तिशाली परिणाम देते हैं, परन्तु इन तीनों में से भी जब बृहस्पति कर्क राशि यानि 4 के अंक पर होते हैं तो सर्वाधिक शुभ फल देते हैं। जब बृहस्पति कुंडली के केंद्र भावों में अपनी उच्च राशि, मूल त्रिकोण राशि अथवा स्वराशि में से किसी भी राशि में स्थित होता है तो इस योग का निर्माण होता है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि यदि किसी कुंडली में देव गुरु बृहस्पति प्रथम, चतुर्थ, सप्तम या दशम भाव में अर्थात् केंद्र भावों में अपनी उच्च अवस्था वाली राशि अर्थात् कर्क राशि में स्थित हों अथवा अपनी मूल त्रिकोण राशि धनु में विद्यमान हों या फिर अपनी स्वराशि मीन राशि में स्थित हों तो बृहस्पति द्वारा हंस महापुरुष योग का निर्माण होगा।
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