वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, मॉस्को
Updated Mon, 02 Nov 2020 10:00 AM IST
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हालांकि विदेशों में वैज्ञानिकों का कुछ और मानना है, उनका कहना है कि हर्ड इम्यूनिटी से उम्मीद रखना बेकार की बात है। इससे ज्यादा लाभ मिलने वाला नहीं है। ऐसे ही एक रूसी वैज्ञानिक हैं – एलेक्जेंडर शिपरनोव। कुछ वैज्ञानिक अभी भी कोरोना को लेकर कई सवालों के जवाब ढूंढ रहे हैं, जैसे, एंटीबॉडी कब तक शरीर में रहेगी, दोबार संक्रमण की क्या और कितनी संभावना है और हर्ड इम्यूनिटी कितनी कारगार है?
ऐसे कुछ सवालों के जवाब ढूंढने के लिए रूसी वैज्ञानिक शिपरनोव ने खुद को दोबारा संक्रमित किया। पहली बार शिपरनोव फरवरी में संक्रमित हुए थे, जब वो फ्रांस दौरे पर थे। तब कोरोना का प्रभाव इतना ज्यादा नहीं था और वो बिना अस्पताल जाए ठीक हो गए।
इसके बाद शिपरनोव ने साइबेरिया के इंस्टीट्यूट ऑफ क्लीनिकल एंड एक्सपेरिमेंटल मेडिसिन में कोरोना एंटीबॉडीज पर अध्ययन शुरू किया। उन्होंने पाया कि संक्रमण के दौरान तीसरे हफ्ते तक एंटीबॉडी का कुछ पता नहीं चल सका। इसके बाद वो बिना मास्क लगाए संक्रमित मरीजों के साथ रहे और दोबारा संक्रमित हो गए।
दोबारा संक्रमित होने पर शिपरनोव ने गले में खराश जैसे लक्षण को महसूस किया। इसके अलावा पांच दिनों तक उनके शरीर का तापमान 39 डिग्री सेल्सियस रहा। उनकी सूंघने की शक्ति कम हुई और स्वाद में भी बदलाव आया। दूसरी बार संक्रमित होने के बाद शिपरनोव को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा।
वैक्सीन लेने से ही होगा फायदा
शिपरनोव ने बताया कि छठें दिन उनके फेफड़ों का सीटी स्कैन हुआ, जिसमें कुछ परेशानी वाली बात नहीं आई। शिपरनोव ने अध्ययन के बाद यह नतीजा निकाला कि हर्ड इम्यूनिटी से कोरोना को हराने की उम्मीद बेकार है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि वायरस अभी कई सालों तक रहना है, इसे खत्म करने के लिए वैक्सीन के कई डोज लेने होंगे।
