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अफगानिस्तान: रूस, चीन और पश्चिमी देश बढ़ा रहे हैं मुसीबतजदा आवाम की मुश्किलें

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, काबुल
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Sat, 11 Dec 2021 07:53 PM IST

सार

संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम का अनुमान है कि इस साल सूखे की वजह से अफगानिस्तान में लगभग 40 फीसदी फसल बर्बाद हो गई। इससे देश में अनाज की भारी कमी है। नतीजतन, लगभग 32 लाख बच्चे पौष्टिक भोजन से वंचित हैं…

बच्चों से हाथ मिलाते जवान
– फोटो : पीटीआई (फाइल)

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अफगानिस्तान में सर्दी का मौसम आने के साथ लोगों की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। देश में काम करने वाली गैर-सरकारी सहायता एजेंसियों का कहना है कि बड़ी मानवीय त्रासदी टालने के लिए तुरंत बड़े पैमाने पर मदद की जरूरत है। लेकिन उनका आरोप है कि पश्चिमी देश, चीन, और रूस अफगान लोगों की मुसीबत को बढ़ाने में योगदान कर रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम का अनुमान है कि इस साल सूखे की वजह से अफगानिस्तान में लगभग 40 फीसदी फसल बर्बाद हो गई। इससे देश में अनाज की भारी कमी है। नतीजतन, लगभग 32 लाख बच्चे पौष्टिक भोजन से वंचित हैं। संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि अगर तुरंत खाद्य सहायता नहीं पहुंचाई गई, तो लगभग दस लाख बच्चों की मौत हो सकती है।

चीन और रूस ने झाड़ा पल्ला

इतनी भयावह स्थिति के बावजूद इस बात के कोई संकेत नहीं हैं कि अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, चीन या रूस अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के प्रति अपनी नीति बदलने पर किसी तरह का विचार कर रहे हैं। चीन और रूस लगातार यही कह रहे हैं कि अफगानिस्तान में मदद पहुंचाना पश्चिमी देशों- खास कर अमेरिका की जिम्मेदारी है। उनका कहना है कि अफगानिस्तान में मौजूदा हालात पश्चिमी देशों के सैनिक हस्तक्षेप की वजह से पैदा हुए हैं। इसलिए इसे संभालना भी उनकी ही जिम्मेदारी है।

जबकि पर्यवेक्षकों का कहना है कि भौगोलिक रूप से रूस और चीन दोनों अफगानिस्तान करीब हैं। इसलिए वे चाहें तो तुरंत सहायता पहुंचा सकते हैं। वेबसाइट एशिया टाइम्स में छपे एक विश्लेषण में चेतावनी दी गई है कि ऐसा ना करके चीन और रूस अपने लिए खतरा मोल ले रहे हैं। इसके मुताबिक अगर अफगानिस्तान में मानवीय त्रासदी गहरी हुई, तो इन दोनों देशों को ही सबसे पहले शरणार्थी समस्या का सामना करना पड़ेगा।

हक्कानी गुट के बढ़ते प्रभाव से बढ़ी चिंता

विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि चीन और रूस दोनों ने तालिबान के साथ कूटनीतिक संपर्क बना रखे हैं। इसके बावजूद उन्होंने तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता नहीं दी है। इसकी वजह उनका अपना रणनीतिक जोड़-घटाव है। बताया जाता है कि चीन और रूस दोनों अफगानिस्तान में हक्कानी गुट के बढ़ते प्रभाव से चिंतित हैं। उन्हें शक है कि हक्कानी गुट का आईएसआईएस-खुरासान और दूसरे इस्लामी चरमपंथी गुटों के साथ संबंध है। जबकि इस्लामी चरमपंथी गुट रूस और चीन दोनों के लिए चिंता की वजह हैं। चीन को खास चिंता ईस्ट तुर्कमिनिस्तान इस्लामी मूवमेंट (ईटीआईएम) नाम के गुट से है, जो अतीत में चीन के प्रांत शिनजियांग में आतंकवादी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार रहा है।

उधर पश्चिमी देश अफगानिस्तान से अपनी अपमानजनक वापसी को भूलने को तैयार नहीं हैं। उन्हें इस बात की शिकायत है कि तालिबान ने पश्चिम समर्थित अशरफ गनी सरकार के साथ राजनीतिक समझौता नहीं किया। इसके बदले उसने काबुल पर कब्जा कर लिया। ऐसे में वे तालिबान शासन के तहत अफगानिस्तान को किसी प्रकार की मदद देना नहीं चाहते।

जबकि पर्यवेक्षकों का कहना है कि इन ताकतवर देशों के इस रुख की कीमत आम अफगान जनता को चुकानी पड़ रही है। उनकी मुसीबतें तेजी से बढ़ रही हैं। तालिबान सरकार इससे निपटने में नाकाबिल है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय मदद तुरंत अफगानिस्तान पहुंचे, ये बेहद जरूरी होता जा रहा है।

विस्तार

अफगानिस्तान में सर्दी का मौसम आने के साथ लोगों की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। देश में काम करने वाली गैर-सरकारी सहायता एजेंसियों का कहना है कि बड़ी मानवीय त्रासदी टालने के लिए तुरंत बड़े पैमाने पर मदद की जरूरत है। लेकिन उनका आरोप है कि पश्चिमी देश, चीन, और रूस अफगान लोगों की मुसीबत को बढ़ाने में योगदान कर रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम का अनुमान है कि इस साल सूखे की वजह से अफगानिस्तान में लगभग 40 फीसदी फसल बर्बाद हो गई। इससे देश में अनाज की भारी कमी है। नतीजतन, लगभग 32 लाख बच्चे पौष्टिक भोजन से वंचित हैं। संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि अगर तुरंत खाद्य सहायता नहीं पहुंचाई गई, तो लगभग दस लाख बच्चों की मौत हो सकती है।

चीन और रूस ने झाड़ा पल्ला

इतनी भयावह स्थिति के बावजूद इस बात के कोई संकेत नहीं हैं कि अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, चीन या रूस अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के प्रति अपनी नीति बदलने पर किसी तरह का विचार कर रहे हैं। चीन और रूस लगातार यही कह रहे हैं कि अफगानिस्तान में मदद पहुंचाना पश्चिमी देशों- खास कर अमेरिका की जिम्मेदारी है। उनका कहना है कि अफगानिस्तान में मौजूदा हालात पश्चिमी देशों के सैनिक हस्तक्षेप की वजह से पैदा हुए हैं। इसलिए इसे संभालना भी उनकी ही जिम्मेदारी है।

जबकि पर्यवेक्षकों का कहना है कि भौगोलिक रूप से रूस और चीन दोनों अफगानिस्तान करीब हैं। इसलिए वे चाहें तो तुरंत सहायता पहुंचा सकते हैं। वेबसाइट एशिया टाइम्स में छपे एक विश्लेषण में चेतावनी दी गई है कि ऐसा ना करके चीन और रूस अपने लिए खतरा मोल ले रहे हैं। इसके मुताबिक अगर अफगानिस्तान में मानवीय त्रासदी गहरी हुई, तो इन दोनों देशों को ही सबसे पहले शरणार्थी समस्या का सामना करना पड़ेगा।

हक्कानी गुट के बढ़ते प्रभाव से बढ़ी चिंता

विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि चीन और रूस दोनों ने तालिबान के साथ कूटनीतिक संपर्क बना रखे हैं। इसके बावजूद उन्होंने तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता नहीं दी है। इसकी वजह उनका अपना रणनीतिक जोड़-घटाव है। बताया जाता है कि चीन और रूस दोनों अफगानिस्तान में हक्कानी गुट के बढ़ते प्रभाव से चिंतित हैं। उन्हें शक है कि हक्कानी गुट का आईएसआईएस-खुरासान और दूसरे इस्लामी चरमपंथी गुटों के साथ संबंध है। जबकि इस्लामी चरमपंथी गुट रूस और चीन दोनों के लिए चिंता की वजह हैं। चीन को खास चिंता ईस्ट तुर्कमिनिस्तान इस्लामी मूवमेंट (ईटीआईएम) नाम के गुट से है, जो अतीत में चीन के प्रांत शिनजियांग में आतंकवादी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार रहा है।

उधर पश्चिमी देश अफगानिस्तान से अपनी अपमानजनक वापसी को भूलने को तैयार नहीं हैं। उन्हें इस बात की शिकायत है कि तालिबान ने पश्चिम समर्थित अशरफ गनी सरकार के साथ राजनीतिक समझौता नहीं किया। इसके बदले उसने काबुल पर कब्जा कर लिया। ऐसे में वे तालिबान शासन के तहत अफगानिस्तान को किसी प्रकार की मदद देना नहीं चाहते।

जबकि पर्यवेक्षकों का कहना है कि इन ताकतवर देशों के इस रुख की कीमत आम अफगान जनता को चुकानी पड़ रही है। उनकी मुसीबतें तेजी से बढ़ रही हैं। तालिबान सरकार इससे निपटने में नाकाबिल है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय मदद तुरंत अफगानिस्तान पहुंचे, ये बेहद जरूरी होता जा रहा है।

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